________________ - 18 सोत्तबंधणं, मलिलासय, सोमगा; वीसगरस्मय दायगा, उत्तणवल, दागिणिदय, पलीवगा, कुरकम्मकारी // इमेय बहवे मिलक्खू जाती किं ते-पक्का, जवणा, - संवर, वव्वर, कायमुरडाडु, भडग, भित्तिय, पक्किणिय, कुलक्खा गौड, सीहल, पारस, कोच, अंध, दविल, चिल्लल, पुलिंद, आरोस, डोव, पोक्काण, गंध, हारग,. बहलीय, जल्लारोमां, मास, बउस, मलयाय, चुचुयाय, चुलक, कोकणगामेय, पुरुष शिकारी प्राणियों का पोषण करके उनके मंयोग से जीवोंका विध्वंम कराते हैं. कूट गश डालनेवाले, वन में विचरनेवाले भिल्लादि, अर्थ के लोभी, मधु, शहत लेनेवाले, पक्षियों के बच्चों की घात करनेवाले, पशुओं को खींचनेवाले, घात के लिये पशुओं का पोषण करनेवाले, सरोवर, द्रह, तलाव, वाबडो, कुंड, छोटे जलस्थ न, इत्यादि जलस्थान को पानो रहित करनेवाले, पानी का मन्थन करनेवाले, मत्स्यादि की उत्पत्ति के लिये पानी की पाल बांधनेवाले, पानी का शोष करनेवाले, कालकूटादि विष से मारनेवाले,2, उत्पन्न हुए और बृद्धि पाये हुवे वृक्ष तृणादिक स्थान में दावानल लगानेगले, और निर्दयता से क्रूा कर्मी करनेगले घात करते हैं. हिमक-मच्छ जीवो के उत्पत्ति स्थान कहते हैं-१ शारदेश, 2 यान देश, ३मंबर देश,४ बर्बर देश.५ काय, 6 मुरड. 7 दुभटक, 8 तिनका, 9 कणिक. 10 कुरक्ष, 11 गौड,१२ मीहल, 1711.3 पारस, 14 क्रौंच 15 अंध, 16 द्रविड, 17 बिलरल, 18 पुलिद 19 आरोश, 20 रोब: मुनि श्री बयोलर ऋषिजी wamisamarinaamaaranaamaamananm काशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रमादजी / 4- अनुवादक-बाऊनमच