________________ 44 भणियाणे, अबहिलेस्से, अम्ममे, अकिंचणे छिण्णगंथे, निरुवलेसु // 11 // विमलवर-कंस भायणं चेव मुक्कतोय,संखेविवनिरंगणे, विगए रागदोस मोह,कम्मोइव वइंदिएसगत्ते, जच्चकंचणंबजायरूवे, पुक्खर पत्तंव निरुवलेवे, चंदोइवसोमभावयाए, 213 सूरोवदित्ततेए, अचले जह मंदरे गिरिवरे, अक्खों सागरोव्वथिमिए, पुढविं विवसव्व फासविसह,तक्साइय भासरासि छण्णेव जायतेए, जलिय हयासणोविव तयसा जलंत. गोसीस चंदणविव सीयले सुगंधिए, हरउ विवसमियभावे, धेग्उासियस, निम्मलवं आयंस E रहित, ममत्व और द्रव्य रहिन, ममत्व के छेदक इयादि गुणो वाले नियरिग्रही होते हैं. // 11 // अब साधुकी ओपमा कहते हैं -जैस कांस क पात्र को पानीका लेप नहीं लगता हैं वैसेही निष्परिग्रही स्नेहभावसे नहीं भेदाते हैं, 2 जैसे शंखपर रंग नहीं चढता है वैसे ही वे रागद्वेष और मोह रंग रहित हैं, 3 काछरे जैसे जीतेन्द्रिय, 4 जैन सुवर्ण का कोट नहीं लगता है वैसे ही रागमाल रहित होते हैं, 5. कमल पत्र समान लेपरहित होते हैं,६ चंद्र समान सौम्य दर्शन वाले होते हैं, 7 सूर्य जसे दीप्त तेज वाले, 8 मेरू पर्वत / जैसे अचल, 9 समुद्र समान अक्षुब्ध, 1. पृथ्वी जैसे शुभशुभ स्पर्श समभाव से सहन करने वाले, 11 राख से ढकी हुइ अग्नि समान तप तेजसे दीप्त, 12 जैसे मध सेवन से अग्नि की ज्याला वृद्धि पाती है। " वैसे ही वैराग्य से ज्ञानादि मुनों की वृद्धि करने वाले होते हैं.. 12 गोंशीर्ष चंदन जैसे शीतल स्वभावी / दशमान प्रश्नव्याकरण पूत्र-द्वितीय मंवरद्वार 498 निष्परिग्रह नापक पंचम अध्ययन H 48 tt