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________________ 1 अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + / 'बहुहि कारणसएहिं हिंसंति, ते तरुगणेय, भणिया अभणिएय, एवमादी, सत्तेसत्त, परिवजिए उवहणंति दढमूढा दारुणमती // 10 // कोहा, माणा,माया, लीभा,हासा,रती, 1. अरती, सोय, वेदत्थी, जीयकामत्थ, धम्महेउं, सवसा, अवसा, अट्ठा, अणट्ठा, तसेपाणे थावरेय हिंसति मंदबुढी // 11 // सनसाहणंति, अवसाहणंति, सवसाअवसा दुहतोहणंति, अट्ठाहगंति, अणटाहणंति अट्ठाअणट्ठा वुहाहणंति, हस्साहणति, वेराहणंति, रतियहणति, हासावेररतिहणति, कुद्धाहणंति लुद्धाहणति गाडे, अनेक प्रकारके गाडे, अट्टालक, नगरद्वार, गोपुर, यंत्र, शूली, लाट, यीआर, शतघ्नी( ताप )इत्यादि बनाने में और अन्य अनेक प्रकार के कारनों से मंद बुद्धि वाले पुरुष वृक्षों के समुह का घात करते हैं. // 10 // वे मंदबुद्धि वाले जीव क्रेध, मान, माया, लोभ, रति, अरति, शोक, स्त्री पुरुष व नपुंसक इन तीनों वेद के लिये, जीवितव्य की कक्षा के लिये, धर्मनिमित्त, समवश परघश में अर्थ व अनर्थ से त्रम और स्थावर जीवों की हिंमा करते हैं // 11 // वे मंदबुद्धिवाले स्वरश से जीवों का घात करते हैं। परश से करते हैं. स्वपश और परवश दोनों प्रकार घात करने हैं. किसी प्रकार के प्रयोजनसे घात करते 1. बिना प्रपोजन निरर्थक घात करते हैं. अर्थ अथवा अनर्थ दोनों प्रकार से जीयों का घात करते हैं. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादी
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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