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________________ - 4.8 वत्थमादिएहिं अणिलं॥९॥अगार,पोस्यार, भक्ख, भोयण, सयणासण, फलग, मूसलं, उक्खल,तत वितत, तोज, वहण बाहण, मंडव, विविह, भवण, तोरण, विडंग, देवकुल, जालय, अडचंद, निज्जुहग, चंदसालिय, चेतिय, णिस्सेणि, दोणि, चंगेरी, खीला, मेढक, सभा, प्पवा, वसह, गंध, मल्लाणुलेवणं, अंबरजुयनंगल, मतिय, कुलिय, संदण, सीया, रह, सगड, जाण, जोग्ग, अट्टालग, चग्यि, दार, गोपुर, फलिहं,जंत, सूलिय, लउड, मुसंढि, सतग्धि, बहुप्पहरणा वरणवक्खाराणयकए, अण्णेहिय एव मादिएहि मयूर पीछादि से, ताली बजाने से, शोक वृक्ष के पत्र से और वस्त्र से वायुकाया का आरंभ होता है. // 9 // अब वनस्पतिकाया का आरंभ के हते हैं. घर बनाने में, खगादि शस्त्र के म्यान बनाने में, खाने के लिये भोजन तैयार करने में, पर्यकादि बनाने में, बाजोदि आसन बनाने में, फलक-पटिया बनाने में सूशल? 4 उखल बनाने में, तंत्री तारके बादित्र बनाने में, वितत पडहादि वादित्र बनाने में, तोज-फूककर बनाने के आदित्र में, कूट के बनाने के वादित्र में, वाहन,जहाज, शकटादि केलिये मंडप, विविध प्रकारके भवन,तोरण, पक्षियों के स्थान, देवालय, जालियों, अर्धचंद्र, वारसाख, चंद्रशाला, वेदिका, सीढी, नावा, घडी, चंगेरी / 17 खंटो, खंदे, सभा, प्रसा, इब्ने, माला, विलेपन, वस्त्र, रथ, . हल, शिविका, स्थ, संग्रमिकरथा / दशमांङ्ग प्रश्नव्याकरण मूत्र प्रयम-आश्रद्वार 48 हिया नामक प्रथम अध्ययन 4 4
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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