________________ 21 दार, गोपुर, अट्टालग चरिय, सेतु, संकम, पासाय, विकप्प, भवग, घर, सरण, 'लंण, आवण, चेतिय, देवकुल, चित्तसभा, पवा, आयतण,अवसह,भूमिघर,मंडवाणय कए, भायण, भंडोवगरणस्स विविहस्सय अट्ठाए पुढविं हिंसंति, मंदबुद्धिया // 6 // जलंच-मजणय, पाण, भोयण, वत्थधोवण, सोयमादिएहि ॥७॥पयण, पयावणं, जलण जलावणं, विदंसणेहिय अगिणि||सुप्प वियण तालविंट,पेहुणमुह, करतल, सागपत्त, .. + अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषिनी / आठ हाथ प्रमाण द्वार का पंथ, पानी उतरने का भाग, (पूल) प्रासाद, विकल्प, भवन, घर, शयन, लपन, दुकान, प्रतिमा, देवालय, चित्रसभा, प्रपा, आयतन, परिव्राजक का निवास स्थान, भूमिगृह, मंडप, घटादि भाजन, और अन्य विविध प्रकार के कारनों से प्रेराए हुवे मंदबुद्धिवाले, पूर्व और तत्व के अज्ञान जीवों पृथ्वीकाया का आरंभ करते हैं. // 6 // पानी के आरंभ की कारन बताते हैं. स्नान के करने के लिये, पानी पीने के लिये, भोजन बनाने के लिये, वस्त्र धोने के लिये, और शुचि काम करने के लिये जीव पानी का आरंभ करते हैं. // 7 // अब अग्नि का समारंभ कहते हैं. धान्य पचाने के लिये, अन्य से पचवाने के लिये, दीपक जलाने और बुझाने से, अनिकाया का आरंभ करने हैं // 8 // अब वायुकाया का आरंप कहते हैं-सूप से झटकने से, पंखे से हवा डालने से, तालवृत से बीजने से प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायनी ज्वालामसादजी.