________________ 4+ 207 सुविहियाणं जंपियओ दिववियरचितकपज वजाय पकिण्ण पाओकरण पमिच्छ मिसग कायगडं पाहुडंवा दाणट्टयाए पुण्णपगटुं, समण वणीमगट्टया एवं कीय पच्छा कम्म,पुरेकम्मं नितिकम तितिकं मंक्खिकं,अइरित्तं, मोहरं सयग्गाह साहडं,महिआ? वलितं अच्छेजंचेव अणिसिटुं जति तिहि सुजण्णेसु ऊस्सवेसुय, अंतोहिंच्च बाहिंच E होज्जं समणट्टयाए ठवियं, हिंसा सावज संपउत्त नकप्पइ तपिय परिघेतं // 7 // पीछे नीमावे दानशाला का आहार पुण्य के लिये अर्थात् मृत्यु पछि ब्रह्मणादिक को देने के लिये रखा हो वैसा Eआहार, अन्य किसी को देने के लिये बनाया हुआ. शाक्यादि साधु के लिये बानया हुवा. भिक्खारियों के लिये बनाया, पश्चात कर्म दोष लगे वैसा आहार, पूर्व कर्म दोष वाला आह.र. सदैव एक ही घरका अहार, और साचित्त रज अथवा सचिच पानी से भरा हुवा पात्र वाला आह र लेवे नह.. अपनी मर्यादा से अधिक ग्रहण करे नहीं, दानदिये पहिले अथवा पीछे दातार की कीर्ति को नहीं, दातारने शुद्ध अंतः करण पूर्वक दिया होवे वही ग्रहण करे, ग्राम गदिसे सन्मुख लाकर दिया होवे उसे ग्रहण करे नहीं है लाख अथवा चपड़ी से बंध किया हुवा भजन का मुख खोलाकर लेवे नहीं, निर्बल से छीन कर कोई देवे तं. ग्रहण करे नहीं, मालिक अथवा भागदार की आज्ञा विना ग्रहण करे नहीं. मदनादि तीथी में, यक्षादि पूजा में, इन्द्रादि महोत्सव में बना हुवा आहार, घरकै बाहिर तथा अंदर हो परंतु at दशमाङ्ग प्रश्नव्याकरण सूत्र-द्वितीय संवरद्वार + निष्पारग्रह नामक पंचम अध्ययन 4BP