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________________ 4. अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री श्रमालक ऋषिजी, सव्वजग जीव वच्चलेहि, तिलोगमहिएहि, जिणवरिंदेहि, एसजोणी जगाणदिवा, नकप्पइ जोणी समुच्छिदोत्ति, तेणवजति ममणसीहा, जंपिय ओदण कुम्मासगं जीतप्पण मथु अजिज पललं सुप्पसंकुले वेढिम वर संख चुण्ण कोसग पिंड सिहरणी वग मोयक खीर दाह सप्पि नवणिय तिल गुड खंड मच्छडिय महु मज्ज मंस खजग वंजण विहिमाइयं पणीयं उवस्सए परघरे वरण्णे, नकप्पइ तपिं संनिहिं काउण संसार से नितिने की इच्छा वाले को परिग्रह का त्याग करना उचित है, इस का त्याग कौन करते हैं ? जो साधु सिंह समान है. वही त्याग कर सकते हैं. वह निष्परिग्रही साधु शरीर को पोषणा के लिये उडद, सत्तू , घोर की गुठली, भुंजी हुई अनाजकी धाणी, पोवा, मुंग, तिल संकुली, हलवा, प्रधान रस कड. चूरण, कोष्टक, लड्डु आदि सिरनी, मोदक, दूध, दधि, धृत, मक्खन, तेल, गुड, सक्कर, मीश्री शहद,मदिरा,मांस खाजे,सालन, इत्यादि विविध प्रकार के रस प्रणित पदार्थ अपने उपाश्रय में तथा अपने नेश्राय में कर अन्य के वहां रखे नहीं. ऐसी वस्तु का संचय करना भी माधु को कल्पता नहीं है. सुविधि युक्त संयम पालनेवाले साधु को अपने लिये उद्देश कर बनाया हावे, यह आहार साधु को ही देना ऐसा स्थापकर रखा हो, साधु के निमित ही लहु आदिबांधकररखे होवे, इत्यादि कोई भी वल्तु साधु के लिये बानकर अथवा बनाकर रखा हो, पकाकर रखा हो,वेमा आहार तथा अंधकार में प्रकाश कर के देवे, उधार लेकर देवे, अपने और साधु दोनों के निमित्त सामिल बनाकर देव सा मिश्र, मोल लाकर देवे, साधु को देने म हुने आगे * प्रकाशक-राजाबहादुर लालामुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी / /
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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