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________________ 44 7/201 संख दंत मणि सिंग सेल कायकर चेल चम्म पत्ताई महरिहाई परस्सं अझ वाय,लोभजजणाई परियहिओ गुणवयो नयावि पुप्फ फल कंद मूलादिकाई सणसत्तरसाइं,सब्वधण्णाई तीहिंवि जोगेहिं परिघेउ उसह भेसज्ज भोयणट्टयाए // 6 // संजएणं किं कारणं , अपरिमिय नाणदसण धरेहि, सीलगुण विणय तव संजम नायकेहि,. तित्थंकरेहि TE पाषाण, क्रौच,प्रधान वस्त्र,चर्म. महामूल्य वस्तु जो औरों के चित्त को हरन करनेगली, लोभ तृष्णए की इत्यादिक / द्रव्य निष्परिग्रही को पास रखना नहीं. अपने पास से खराब वस्त्रादि ग्रहस्त को देकर अच्छा लेना नहीं। भोगवना नहीं, भोगिक वस्तु को ग्रहण करे नहीं. वैसे ही पथ्य, फल, कंद मूल और वीण वगैरह सवित्त पदार्थ औषध भैषज्य के लिये तथा भोजनादि के लिये मन वचन और काया कर ग्रहण करनानहीं कल्पते हैं // 6 // शिष्य प्रश्न करता है कि किस कारन से उक्त द्रव्य ही कल्पे ? गुरु कहते हैं कि-परिग्रह का संग्रह करने से परिग्रह की मर्थदा का उल्लंघन कर वह साधु अपरिमित व्यक संग्रह कर ममत्वी बन जाता है, इस लिये प्रधान ज्ञान दर्शन के धारक मूल गुन उत्तर गुन- तप संजम विनपदि गुनों की वृद्धि करनेव ले सब जगत् की वात्सल्यता करने वाले, तीन लोंक में पूज्यनीय, 'केवल ज्ञानियों में प्रधान जिनेन्द्र श्री तर्थिकर भगवानने इस परिग्रह को चौरासी लाख जीव योनि में परिभ्रमण कराने का कारने जानकर निषेध किया है. / दशमान प्रश्नव्याकरण मूत्र-द्वितीय वरद्वार +91 निष्परिग्रह नामक पंचम अध्ययन -
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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