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________________ 20. बाद क-बालबचरी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + अरिहंत जैने अपनी माहमा पूजा चलावे ये ३०जने महा मोहनीय कर्म बंध करते हैं॥३१इकतीस सिद्धके गुनज्ञानावरणीयकी 5, दर्शना वहणीय की 9, वेदनीय 2, मोहनीय की 2 आयुष्य की४, नामर,गोत्र२, और अंतराय कर्म को 5, यो. 8 कर्म की 31 प्रकृतियों का क्षय करनेसे सिद्धके 31 गुनोंकी प्राप्ति होती है।।३२ बत्तीस प्रकार का योग संग्रह-१ लगा दोष गुरु आगे प्रकाशना, 2 जो आलोचना गुरु पास की होव उसे दूसरे के पास कहना नहीं, 3 दुःख आनेपर धर्म में दृढ रहना, 4 किसी की अपेक्षा विन गुप्त तपश्चर्या a करना, 5 मूत्र अर्थ का ग्रहण रूप शिक्षा को यथोचित्त ग्रहण करना, 6 शरीर की मुश्रुष नहीं करना. 37 तपश्चर्या करके यश पूजा के लिये किसी के पास कहना नहीं, 8 किसी वस्तु का लोम करना नहीं 19 तितिक्षा परिषद सहन करना, 10 ऋजुता रखना, 11 सत्यका नियम रखना, 12 सम्यक् दर्शन को शुद्ध रखना, 13 चित्त का स्वास्थ्यपना रखना, 14 आचार युक्त होकर माया कपट करना नहीं, 15 निय युक्त होकर माया करना नहीं, 16 आदीन वृत्ति रखना, 17 संवेग भाव रखना, 18 प्राणिधि रखना. 19 शुभ अनुष्ठान का आचरन करना, 20 आश्रव का निरुधन करना, 21 अपने देषों को। जानकर निग्रह करना, 22 सत्र प्रकार के विषय से विमुख रहना, 23 त्याग प्रत्याख्यान को वृद्धि करना, 24 कायुत्सर्ग करना, २५पांचों प्रमाद कम करना, 26 यथोक्त रीति से कालोकाल क्रिया करना, 27 सदैव धर्म ध्यान करते रहना, 28 योगों का संवर करना, 29 मारणांतिक वेदना प्राप्त होने पर मन * पकाचाक राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादनी*
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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