________________ 18 जमे सर्पिण: अपने पोषक को मारे बैसे कोइ राजा, मंत्री वा धर्म प.ठकको मारे, 16 कोइ राष्ट्र का नापक, ग्राम का नेता अथवा नगर शेठ को पारे, 17 मनुष्य का नेता अथवा संसार सागर में प्राणियों की को द्वीप समान पुरुष को मारे, 18 संयम में प्रवत, सावध क्रिया से विरक्त, वैसे ही जगज्जीवों को जीवन समान भिक्षु (माधु) को मारे, १९अनंत ज्ञान वाले, रागद्वेष क्षय करने वाले और मम्यक्त्व दर्शनवाले, के अवर्ण बाद बोले, 20 न्याय मार्ग का अवर्णवाद बोले अथवा द्रोह करे, 21 जिन आचार्य के पास से श्रुत पवितय ग्रहण किया होवे उन की हीलन निंदा करे, 22 आचार्य उपध्यायका-प्रत्युपकार नहीं करे, 2023 अबहुश्रुत होने पर आत्मा की प्रशंसा करे कि मैं बहुश्रुत हूं और इस तरह स्वाध्याय वाद करे / कि मैं शास्त्रका पाठक हूं, 24 अतपस्वी होनेपर तपस्वीवन अपनी प्रशंसा करे,२५ किसी आचार्यको ग्लानपना अथवा रोगीपना प्राप्त हुवा हो उन को उपकार के लिये औषधोपचारादि काने में समर्थ हैं परंतु इनने मेरी सुश्रुषा नहीं की थी. इस लिये मैं भी इन की सुश्रुषा नहीं करूं ऐसी शटता, धूर्त , व माया करे. और वह चतुर मायावी बनकर बता कि मैं इस का औषधो पचार करता हूं ऐसी कल्पना से कलुपित चित्तवाला बने, 26 ज्ञानादिक गुन नाश करने वाली .व.प्राणी के घात करने वाली कथाओ का विस्तार करे, 27 श्लाघा अथवा मित्र स्वजनादिक के लिये * अधार्मिक योग प्रयुजे, 28 जो कोई बाल देवताओं की ऋद्धि, श्रुति, यश, वर्ण, बल, वीर्य का अवर्ण, के बाद बोले, और 30 यश, देव व ग्रहस्थान नहीं देखता हुवा कहे कि मैं देखता हूं ऐसा कह कर . ब-द्वितीय संवरद्वार 45 देशमाङ्ग-प्रश्नव्याकरण भूत्र - - निष्परिग्रह नामक पंचम अध्ययन 41. "