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________________ एवं चउत्थं संवरदारं फ सियं पालियं सोहियं तीरिय कीट्टीयं, आराहियं अगाए अणुपालियं भवइ॥एवं गायमुणिणा भगवया पण्णवियं परूवियं पसिद्ध सिद्ध सिद्धिवर ससणमिणं आघवियं सुदेसियं पसत्थं चउत्थ संवरदारं सम्मत्तं तिबेमि // इति चउत्थं संवस्दारज्झयणं सम्मत्तं // 4 // * * * * 19. m दामाङ्ग-प्रश्नव्याकरण सूत्र-द्वितीय संवरद्वार 488 हुआ इस को जीवन पर्यंत पाले. धृतिवंत बुद्धिवंत इसे अनाश्रवका स्थान. कलुष्यता रहित पाप छिद्र रहित परिश्रा रहित जानकर पाले, शुद्ध रखे पार पहुंचावे, कीर्ति युक्त आराधे, और जिनाज्ञानुमार में आराधक होवे, श्री ज्ञाताकुल नंदन श्री श्रमण भगवान महावीर स्वामीने प्ररूपा है. कहा है और प्रसिद्ध किया है. यह सिद्ध स्थान प्राप्ती का प्रधान शामन है. अच्छा उपदेश है,प्रधान शसन है. अच्छाउपादेष युक्त और प्रशस्त हैं. यह चौषा संवर द्वार संपूर्ण हुआ. इति संवर द्वार का चौथा अध्ययन संपूर्ण हुआ॥४॥ 480 ब्रह्मचर्य नामक चतुर्थ अध्ययन +8 - -
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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