________________ // पञ्चम अध्ययनम् // है . जंबू ! अपरिग्गहं संवुडेय समणे आरंभ परिग्गहाओ विरते विरए कोह माण माया लोभाओ // 1 // एगे-असंजमे, दो चेव रागदौसा, तिन्नियदंडा, गारवाय, गुत्तीओ तिन्निथ विराणाओ, चत्तारि-कसाया-झाण-सन्न!-विकहा-: सहायहुंति चउरो, पंच किरियाओ-समितिइं-इंदिय-महव्वयाई, छज्जीवनिकाय छच्चलेसाओ, सचभया, अट्ठमया, नवचेव बंभचेर गुतीओ, दसप्पमारेय समणधम्मो,, श्री सुधर्मा स्वामी जम्बू स्वामी से ऐमा कहते हैं. कि अहो जम्बू ! पांचवा संवरद्वार अपरिग्रह का स्वरूप मैं कहता हूं निष्परिग्रही साधु षद्काया के आरंभ से और बाह्य परिग्रह धन धान्यादि, आभ्यंतर परिग्रह क्रोध पान माया लोध इत्यादि से निवर्ते हुए हैं. // 1 // आगे निष्परिग्रही के लक्षण कहते हैं.११ 3. एक प्रकार असंयम, 2 दो प्रकार के बंध- राम बंध और देष बंध, 3 वीन दंड-मनदंड, वचनदंड और काया दंड. तीन गर्व ऋद्धि वर्ग, रस गर्व और साता गर्व. तीन गुप्ति-मन गुप्ति, मचन गुप्ति और काया | गुप्ति. तीन विराधना-ज्ञान विराधना, दर्शन विराधना और चरित्र विराधना. 4 चार काय-क्रोध, 11बान, माया, और लोभ. चार ध्यान-आत. सैद्रा धर्म और शुक्ल चार संज्ञा-माहार, भय. कर अनुवादक-पालनमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - पकाशक-राजाबहादुर काला मुखदेवसहायणी ग्वालाप्रसादजी.