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________________ 4दशमाङ्ग-प्रश्नव्याकरण सूत्र-द्वितीय संवर द्वार लंखमख तुणइल तुंबवीणिय तालायरपर करणाणिया,बहुणिमहुर सरगीयवाराइं सुरसराई अण्णाणिय एवमायाणि तव संजम बंभचेरं घाओवघाइयाई अणुचरमाणणं बंभचेरं, नाताई समण लब्भाद, नकहेउ नविय सुमायरिउजे,एवं पुव्वरय पुन्चकीलियं विरइ समिइ जोगेण भाविओ भावइ अंतरप्पा आरय मणेण विरइ गामधम्मे जितिदिए बंभचेरगुत्ते // 10 // पंचमंग आहारपाणीय निद्ध भोयण विवजओ संजए सुसाहु, वगय / खीर दही सप्पी नवनीय तेल गुल खंड मच्छडिय महु मजं मंस खजग विगइ परिचत स्पर्श, वस्त्र भूषण आदि अनेक प्रकार मन को भमानेवाले हैं. गीतों का सुनना, मृत्य देखना, खुमी बन नय करना, मल्ल युद्ध करना, मुष्टि युद्ध करना, मंड चेष्टा, कुकथा, श्रवण, राश रमना, शुभाशुभ हाल कहना, लख वांसान का खेल, चित्रों बताना, तृणा वादित्र बजाना, वीणा बजाना, तालियों पाडना, बहुत प्रकार के मधुर मिष्ट नीत, और नृत्य करना, इत्यादि कार्य ब्रह्मचर्य की बात करनेवाले होते हैं, इस लिये ऐसे कार्य प्राप्त होने पर भी ब्रह्मचारी को देखना नहीं. इन का स्परण मात्र भी करना नहीं. इस तरह पहिले की हुई क्रीडा से निवर्तता हुवा, अंतरात्मा को समाधि भाव से भावता हुवा, इन्द्रियों के विषय से निम्ती हुवा ब्रह्मचर्य की रक्षा करे. // 10 // पांचवी भावना अच्छे साधु स्निग्ध आहार कि जो, काम वर्धक होवे उस का त्याग करे. और भी दुध, दहि, मकखन, घृत, तेल, गुड, सक्कर, मिश्री, शहद, / Hit ब्रह्मचर्व नामक चतुर्थ अध्ययन
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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