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________________ 188 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - जोगेण भाविओ भवइ अंतरप्पा, आयारमणं विरय गामधम्मे जिइंदिए बंभचेरगुत्ते // 9 // चउत्थं पुवरय पुव्व कीलीय पुव्वसंगंथसंथुया, जे ते आवाह विवाह चोलकेसुय तिहीसु जहन्नेसु उस्सवेसुय, सिंगारागार चारुवेसाहि. हावभावलालिय वित्येव विलास सालिणीहिं अनुकुल पेमाकाहिंसद्धिं अनुभूया सयण संपयोगा उउ सुहवर कुसुमसुरभी चंदण सुगंधबर वासधूव सुह फरिस वत्थ भूसण गुणांववेया, रमणिज्जा उज्जगेज पउर,नहगीयग जल मल्ल मुट्ठि गवेलंवग कहग पवग लासग आइक्खग * देखें नहीं, वचन से प्रार्थना करे नहीं, और मन से भी प्रार्थे नहीं. यो स्त्री के रूप से निवर्त हुवा अंत-cm Eरात्मा को सक्ति भावमे भावता हुवा, आक्त भावसे इन्द्रियके विषयमें विरक्त बना हुवा, ब्रह्मचर्य की गुप्ति महित रहे // 9 // चौथी भावना-पहिले भोग अवस्था में की हुई संसार क्रीडा, रते सुख, श्वशुर कुल संबंधी संघ, आप, संस्तव, पिता पक्ष से स्त्री को बोगती वक्त, पीछे पहुंबाते वक्त कीया हुवा वर्तालाप, शिखा रखना, मदन, त्रयोदशी आदि की क्रीडा, नागादिक की पूजा में, कौमारिकादिक के उत्सव में, शृंगार के आगर रूप मनोहर वेष धारन करनेवाली हाव भाव और विलास वारंवार बताकर काप प्रदीप्त करने में इतने प्रकार में लीन बनी हुई अनुकूल शयनादि युक्त, ऋतु संबंधी अलग 2 प्रकार 1+के सुखे.पभोग, फुलों का शृंगार, भुरभिगंध, विलपन, चंदनादि सुगंध, प्रधान धूप का डालना, मुखकारी / * प्रकाशक-राजाबहादुर लाछा सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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