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________________ 4. दशमाङ्ग-प्रश्नव्याकरण सूत्र-द्वितीय संवरद्वार4.1 नचिंतयब्वा, एवं इत्थिकहाविरइ समिइ जोगेण भविओ भवइ, अंतरप्या आरययणं विरयगामघम्मे जिइंदिए बंभचेरगुत्ते // 8 // तइयं नारी गंहसियं भागय चिट्ठिय विप्पे क्खिय गइ विलास कीलियं विवोतिय नह गीय वाइय सरीर संटूण वण्ण कर चरण नयण लावण्णरूव जोवण पयोधराधर, वत्थालंकार भूष गाणिय, गुज्झोवकासियाई, अण्णाणिय,एवमाइयाणि तव संजम बंभचेरघाओ वधाइयाइं अणुचरमाणेणं बंभचेरं नवखुप्ता नमणसा नवयसा पत्थेयब्वाइं पावकम्माइं,एवं इत्थिरूवविरइ, ब्रह्मचर्य नायक चतुर्थ अध्ययन अन्य के पास ऐसी कथा श्रवण करनान ही इतनाही नहीं परंतु इस प्रकार का मन में कल्पा मात्र भी करे नहीं. इस तरह स्त्रियों की कथा से विरक्त बना हुवा अरक्त भाव से इन्द्रियों के विषय से विरक्त बना हुवा जितेन्द्रिय बनकर ब्रह्मचर्य की गुप्ति सहित रहे. // 6 // तीसरी मापना-स्त्री का हंसना, बोलना, अंगचेष्टा करना, वक्र देखना, ललित गति से चलना, विलास क्रीडा करना, पूर्वोक्त नृत्य गीत आदिक्रीडा करना और वीणादि बजाना, शरीर के अंगोपांग का संस्थान, वर्ण, 3 ॐ हाथ, पांव, आंख, लावण्यता, रूप, यौवन, पयोधर, अधरोष्ट, वस्त्रालंकार, भूषण, गुह्य प्रदेश, स्तन, * जघन्य, केश वगैरह अंगोपांग तथा इन सिवाय और भी जो तप संयम का घातक होवे उसे ब्रह्मचारी / -
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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