________________ अथे अनुवादक-बाळब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी धम्मे, जितिदिए बंभवेरगुत्ते // 7 // बिइयं नारीजणस्त मझे नकहेयव्वा कहा विचित्ताविचित्तोय विलीसंसपउत्ता हास सिंगार लोइय कहव्वं मोहजणणी, न आवाह विवाहवरकहाविब, इत्थीणंवा सुभग दुब्भगकहा, चओसटुिंच महिलागुणाणंच नदेस जाइ कुल रूव नाम, ने वत्थ परिजण कहाओ, इस्थियाणं अण्णाविय एव माइयाओ कहाओ सिंगार करुणाओ तव संजम बंभचेर नकहेयव्वा नसुणियव्वा निवृतता हुआ और इन्द्रियों के विषय का जय करता हुआ ब्रह्मचर्य की गुप्ति युक्त रहे // 7 // दूसरी भावना-केवल स्त्रियों के परिषदामें कथा उपदेशाकरे नहीं, विचित्र प्रकारकी स्त्रियों की चेष्टाकरे नहीं, गर्ववती. स्त्रि या विषया अभिलाषी पुरुष का अनादर करती है उसकी तथा नेत्रादिक के षिकार वाली इत्यादि प्रकार की कथा करे नहीं. मंदरम, शृंगार बस मोह उत्पन्न करे वैमी कथा करे नहीं. स्त्रियों को पिता के घर से लाना. लग्न करना, विवाह करना इत्यादिक कथा. स्त्री के सौभाग्य की कथा, दुर्भाग्य की कथा, स्त्री के 64 गुन की कथा, लावण्यता की कथा, पिंगल देश की पद्मिनी आदि जाति की, नागकन्यादि कुलकी, गौर वर्णादि रूप की, नामप्रिया वल्लभादिक की, वस्त्र. लेंधा चोली आदि की परिवार चीट आदिक की कथा करे नहीं, ऐसी कथा तथा विरह के शब्दों वाली कथा ब्रह्मचर्य का घात करने से बाली होती है, वारंवार घात करने वाली होती है इस से ब्रह्मवारी एसी कथा कदापि करे नहीं, *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदव सहायजी चालाप्रसादजी*