________________ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी. भूमिसे नेसेज परघरपवेस, लदावलद्ध माणावमाण निंदण दसमसगफास नियम तव गुण विणाय माइएहिं, जहासे थिर तरंगहोइ. बंभचेरं // इमंचअबंभचेर वेरमण परिरक्खणट्टयाए पावयणं भावया सुकहियं पेचाभाविक आगमेसिभदं सुद्ध नेयाउयं अकुडिलं अणुत्तर सव्वदुःक्ख पावाणं विऊवसमणं // 6 // तस्स इमा पंच भावणाओ चउत्थं वयस्स हंति अबंभचेर बेरमण परिरक्खणट्टयाए // पढमं 19 अल्प वस्त्री व नग्न रहना, 10 क्षुधा तृषा सहन करना, 11 लाघवता-अल्प उपाधि मे संयम में रहना, 12 / शीत ऊष्ण सहन करना, 13 काष्ट शैय्या अथवा भूपिपर शयन करना, 14 गृहस्थों के घर भिक्षाके लिये प्रवेश करना, 15 आहार की प्राप्ति और अप्राप्ति. मान सन्मान मीले अथवा नहीं पीले और निन्दा अथवा प्रशंसा होवे तो वहां समभाव रखना, दंश मच्छर का परिषद सहना, इत्यादि नियमों का पालन ब्रह्मचरी को करना चाहिये. अनशनादि तप. समता इत्यादि गुण, आचार्यादिकका दिनय, वगैरह कि जिमसे ब्रह्मचर्यमें स्थिरता होवे वैसे रहना. ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिये भगवानने यह अच्छा शास्त्र कहा है, परभव में सुखकारी आगामिक काल में कल्याणकारी, शुद्ध न्याय का पंथ, अकुठल-सरल और सब दुःख उपशमानेवाला कहा है // 6 // इस व्रत की रक्षा करने के लिये पांच भावना कही है-प्रथम भावना-शैय्या, आसन, घर द्वार, अंगन, चांदनी, गवाक्ष, शाल, अवलोकन स्थ न पीछे का घर, प्रासाद, शरीर का मंडलाकार, * प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रमादी *