SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धूवण सरीर परिमंडण वाउसिक नह वत्थ केस समारवणाइय,हासय भणिय नह गीय वाइय नडनदृग जल मल्ल पेच्छण वेलंवग जणिय सिंगारागाराणिय, आण्णाणिय एवं माइयाणि, तव संजम बंभचेरोवघाइयाई, अणुचरमाणेणं बंभचेरं, वज्जेयवल्याई सव्वाइं सव्वकालं भावेयव्यो भावइ अंतरप्पा इमेहिं तवनियम सील जोगेहिं निच्चकालं // 5 // किंते अण्हाणग, अदंतधोवण सेयमलजल्ल धारण, मूणवय कसलोएय खम दम अचेलग खुप्पिवास, लाघव सीउसिण कट्टसिज्जा और कांख धोना, शरीर का मर्दन, गात्र को परिश्रम देना-अर्थात् व्यायाम करना, परिमर्दन करना. कुकुप केसरादि लगाना, आवरादि चूर्ण और असरादि वास धूप से शरीर का मंडन करना, नख वस्त्र, केशालंकार करना, हास्य मस्करी इत्यादि करना, गीत गाना,वादिव बजाना,नृत्य नाटक देखना,भांड कुचेष्टा करना, श्रृंगार रस का घर बनाना, और भी इस प्रकार के तप संयम और ब्रह्मचर्य का घात करने वाले, ऐसे दोषों का सेवन ब्रह्मचारी कदापि नहीं करते हैं. इस प्रकार सब काल भाव मे भावता हुवा तप नियम शील सहित प्रा // 5 // वे तप नियम कैसे हैं ? 1 स्नान करना नहीं 2 दांत धोना नहीं 3 प्रस्वेद और 1/4 प्रस्वेद मीश्रित मैल युक्त शरीर रखना 5 मौन धारन करना. निर्थक वार्तालाप करना नहीं 6 मस्तक, 11/के दाढी मूछ के बालों का लोच करना, 7 प्राप्त उपसर्ग परिसह सहन करना, 8 आत्मा को दमन करना है'। दशमाङ्ग प्रश्नध्याकरण सूत्र-द्वितीय-संवरद्वार : ब्रह्मचर्य नायक चतुर्थ अध्ययन 42-
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy