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________________ 187 अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनी श्रीअमोरु.ख ऋषिजी. भवेसुहम्मा, 18 ट्ठिइसु लयसत्तमव्व पबरा, १९दाणंचेव अमओदाणाणं, 20 किमिराओचेव कंबलाणं, 21 संधयणचेव बजरिसभे, 22 संढाणेचेर समचउरंसे, 23 ज्झाणेसुय परमसुकझाणे, 24 नाणेसुय परम केवलं पसिद्धं, 25 लेसासुय परम सुक्कलेसा, 26 तित्थगरचेव जहा मुणीणं, 27 वासेसु जहा महाविदेहे, 28 गिरिरायचेव मंदरवरे, 29 वणेसु जहा नंदणवणं पवरं, 30 दुम्मेसुजहा जंबू सुदसणा विस्सुय जसाजेसे नामेण अयंदवो, ३१तुरंगवइ गयवइ रहवइ नरवइ जहविसूएचेव राया, 32 रहिएचव जहा महरहगए एवं मणेगागुणा अहीणा भवंति, एकंमिबंभचेरे 20 सब कम्बलों में किरमजी रंग की कम्बल,२१ छ संघयनों में बऋषभ नाराच संघयन,२२ छ संस्थ नों में समचतुत्र संस्था न, 23 चार ध्यान में परम शक्ल ध्यान,२४ पांच ज्ञान में केवल ज्ञान,२५छ लेश्या में शुक्ल लेश्या,२६सब मुनियों में तीर्थकर, २७सब क्षेत्रों में महा विदेह क्षेत्र, 28 सव पर्वतों में मेरुपर्वत२९ सब वन में नंदन वन,३०मत्र वृक्षों में जम्बू वृक्ष कि जिसके नाम ही यह जम्बूद्री कहायाहै, 31 जैसे घोडेका पति है हाथी का पति, रथका पाते व मनुष्यों का पति महाराजाविख्यात वही चारो प्रकारके व्रतसे शीलवत प्रध नहै. ओर ३२मी जेसे सब रथों में वासुदव का महारथ शड का परभव करने में प्रधान हे ता है वैसे ही शील रूप मह्मरथ * *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी घालाप्रसादजी *
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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