________________ + - दशम -प्रश्नच्या हरण मूत्र द्वितीय-संवरद्वार + तारागणंच जहा उड्डुपती, 2 मणिमुत सिलप्पवालरत्तरयणागाराणंच,जहा समुद्दो, 3 वेरुलिओचेव जहा मणीणं, 3 जहा म उडोचेव भूसणाणं, 5 वत्थाणंचेव क्खोमजयलं, 6 अरिविंदचेव पुप्फजिटुं, 7 गोसीसंचेव चंदणाणं, 8 हिमवंतोचेव ओसहीणं, 9 सीउदाचेव निन्नगाण, 11 उदहीसु जहा संयंभूरमण, 11 रुयगवरेचेव मंडलिय पव्वया गंपवरे, 12 एरावणचेव कुंजराणं, 13 सीहो जहा मिगाणं, पवरो 14 पन्नगाणचेव वेणुदेवे, 15 धरणे जहा पणगिंदराया, 16 कप्पाणचैव बंभलोए, 17 सभासुयजहा वृक्ष का भंग करने से शोभिते नहीं हैं // 2 // ब्रह्मचर्य की उपमा भगवानने इसपकार कही है.१ जैसे ग्रहगण नक्षत्र और तारागण में चंद्रमा जेष्ठ होता है, २मणि, मौक्तिक, शील, मवाल, और रत्नोंबाला रत्नाकर में समुद्र, 3. मणियों में वैडूर्य मणि, 4 सब आभूषणों में मुकुट, 5 सब वस्त्रों में क्षोभयुगल वस्त्र.६सब पुष्पों में अरविंद कमल, 7 चंदन में गोशीर्ष चंदन, 8 सब प्रकारकी औषधियोंवाले पर्वत में हिमवंत पर्वत, 9 सब नदियों में सीता नदी, 10 सब समुद्रों में स्वयंभूरमण समुद्र, 11 सब वृत्त वैताहय पर्वतों में रुचक द्वीप में 1 रहा हुना रुचक पर्वत, 12 सब हाथियों में ऐरावण, 13 सब पशुओं में सिंह, 14 सुवर्ण कुमार देवता में वणुदेव, 15 नागकुमार देवता में धरणेन्द्र, 16 कल्प देवलोक में ब्रह्मदेवलोक, 17 सब सभाओं में सुधर्मा सभा, 18 सब स्थिति में लवसत्तम ( सर्वार्थ सिद्ध) देव की स्थिति, 19 सब दान में अभय दान, 7I man ब्रह्मचर्य नामक चतुर्थ अध्ययन Hit