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________________ anamana .अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी पउमसर तलाग पालियभूयं,महासगड अरगतुंब भूयं, महाविडम रुक्खखंधभूयं,महानगर पगार कबाड फलिह भूयं, रज्जु,पिणद्धोव इंदकेतु विसुद्धगेण गुणसंपिण,जमिय भग्गंमिहोइ सहासासवं, संभग्ग, महिय चूणिय, कुसलित पल्लट्ठ पडिय खंडिय परि सडिय, विणासियं विणय सीलतवनियमगुण समूह॥१॥तं बभभगवंतं, गहगण मक्खत में वैसे ही सत्र व्रत का रक्षण ब्रह्मचर्य व्रत से होता है. जैसे गाडे के पाइके आरे को मध्य की तुम्ब धारन करती है इस प्रकार ही सब व्रत का रक्षण के लिये शील व्रत है. जैसे महावृक्ष-शाखा, प्रतिशखा. युक्त बडा स्कंध आधारभूत होता है वैसे ही ब्रह्मचर्य व्रत झांति आदि धर्म को आधार भूत होता है, जैसे बहुत मनुष्य दि ऋद्धि से परिपूर्ण महा नगर का रक्षण करने वाला प्राकार के द्वार को अगलादि युक्त बडे दृढ कवाड होते हैं, वैसे ही संयमादि धर्म रूप नगर का रक्षा करनेवाला शील व्रत है. जैसे इन्द्र ध्वजा चारों तरफ अन्य अनेक छोटी ध्वजाओं से मुशोभित है। वैसे ही शील व्रत अनेक गुणों से सुशोभित हैं. ब्रह्मचर्य व्रत का भंग होने से सब व्रत का भंग होता है. जैसे फूटा घडा, मसला हुवा कमल, मन्थन किया हुवा दधि. चूर्ण किया चिना, बान से भेदित शरीर, क्षुब्ध हुवा पर्वत का शिखर, प्रासाद से नीचे पडा हुवा जैसे कलश, खंडित हुवा काष्ट दंड, कुष्ट रोगसे विगडा शरीर, और दावानल से जलाहुवा वृक्ष शोभते नहीं है तैसे ही मनुष्य, मनुष्यनी शील तप गुण के समुह रूप wwwwwwwwwana * पकापाक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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