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________________ नुवादक-बाझब्रह्मचारी मुनो श्री अमोलक ऋषिजी - पीढ फलग सिजा संथारगंवत्थ पाय कंबल दंडग रयहरण निसेजं चोलपट्टग मुहपोत्तिय पादपुच्छंगादि भाषणभंडे वहि उवगरणं परपरिवाओ परस्पदोसो परववएसेणं जंचगिण्हति परस्सनासइ जंचसुक्कयं दाणस्सय अंतराइयं दाणस्सविप्पणासो पेसुन्नंचेव मच्छरितंच, जेविय पीढ फलग सेजा संथारग वत्थ पत्तं कंबल दंडग रयोहरण निसेज चोलपट्ट मुहपोअप्रतीतकर घर में पवेश करे नहीं. अप्रतीतकारी आहार पानी ग्रहण करे नहीं, अप्रतीतकरी वजोट, पाट, पाटला, संथरा रखपात्र कम्बल, रजोहरण, चोलपट्टा, मुखस्त्रिका, पादपंछन, मात्रारिक का भाजन शतकात. उपधि, वस्त्रादि होवे और जिम के लेने से लोक में निंदा होती होवे तो उसे ग्रहण कर नहीं किका केया हुवा अच्छा कार्य को डिपावे अर्थात् कडे कि इसने क्या किया? तो भी अदत्त दान लगे. सुकृत काले को अंतराय देवे. दान करने वाले को अंतराय देवे, पैशुन्यत. चुगली करे, ममार्य भाव धारन करे. अन्य के गुण सहन नहीं करे, पीठ फलग शैय्या संथास, वस्त्र पात्र कम्बल, मुखपति जोहाण, पात्र, भंड इत्यादि उपकरण प्राप्त कर अपने स्वधर्पियों को दवे नहीं, अपने उपयोग में अवे जोपाट पाटले वस्त्र, पात्रादि उपकरन का मर्यद से आधिक संग्रह करे, इत्या दे काम अदत्त आचग्न का किया जाता है. और भी किसीको कोइ दुर्बल देखकर पूछे कि क्या तुम सब तपस्वी हो ? तब तपस्वी नहीं होने पर भी तपस्वी कहे, वह तप का चोर है. श्वेत कॅश वगैरह देखकर *कायक-राजाबहादुर लावा सुखदवसहायनी वाला प्रसादजी*
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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