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________________ दशमान-अभव्याकरण मूत्र-द्वितीय संवरद्वार ME जत्थप गामागार नगर निगम खेड कवड मंडव दोणमुह संबाह पट्टणा समगयंच किं चिदन्वं मणिमुत्तसिलप्पवालक संदृसं स्ययवरकणगरयणमादि पडियं पम्हटुं विप्पणटुं, नकप्पइ कस्सइ कहेउवा गिण्हेतुंवा अहिरण्ण सुवण्णविकेण समलेड, कंचणेणं अपरिगह संबुडेण लोगंमि विहोरियव्वं॥२॥जंपियहुजाहि दव्वजायं खलगयं खेतगयं रणमंत. गयंच किंचि पुप्फ फलतयप्पवाल कंद मूल तण कटु सक्कगई अप्पंच बहुंच अणुंच थूलयंवा, नकप्पई उग्गहे अदिन्नंभिगिण्हेउ दिणिदणि उग्गहं अणुण्णवियगेण्डियन्वं // 3 // वज्जेयव्वोय सव्वकालं अचिंयत्तघरप्पवेसो अचियत्त भत्तपाणं, अचियत्त मंडप, द्रोणमुख, संवाह, पाटन, आश्रम इत्यादि स्थानों में किंचिन्मात्र द्रव्य-मणि, पौक्तिक, सिलाराज। प्रवाल, कांस्यादिक के पाव, बस, चांदी, सूवर्ण और रत्न इत्यादि वस्तु पढी सेवे, अथवा कोई भूल गया | होवे उस का कोई सापी होवे नहीं, ऐसी वस्तु किसी भी कारन से चारित्र वान को ग्रहण करना न चाहिये. कंकर और सुवर्ण को एकसा जानकर निष्परिबी बने. इस प्रकार बना हुया यहां सदैव विचरे, और भी धान्य के खले में, खेत में, जंगल में आटीव में इत्यादि स्थानों में किंचिन्पात्र पुष्प फल, छाल प्रवाल, कंदमूल, तृण, काष्ट कंकर पडा होवे उसे भी विना दिया हुवा लेना नहीं कल्पता है. परंतु बा अविच हो और यहां से उस के स्वामीने जिवनी वस्तु लेन का का होवे उतनी ही वस्तु प्राण करे // 1 // संयमी साधु दत्तव्रत नामक तृतीय मापन --- -
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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