________________ - // तृतीय अध्ययनम् // जंबू ! दत्तमणुण्णाय संवरोनाम होइं ततियं सुव्वय महत्वयं परदव्वहरणं पडिविरति करणजुत्तं अपरिमियमाणंत तण्हामणुगय महिच्छामणवयण कलुस आयणसुग्गनिहियं सुसंजमिय मणहत्थपायनिहुयं निग्गंथं निटिक्कंनिरुतं निरासव निम्मयं विमुखं, उत्तम नरवसभ पर बलवागसुविहिय जणसम्मत्तं परमसाहु धम्मचरणं // 3 // 4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी *पकाकाणावहादुरगाळापुखदेव सहायनाम बालाप्रसाद / अब सुधर्मा स्वामी जम्मू स्वामीसे तीसरा संवरद्वार दत्तव्रत-दिया हुवा ग्राण करने का कहते हैं. वादन : व्रत सुव्रत है, गुण रूप व्रत है, अन्य के द्रव्य को हरन करने से निवर्तने की क्रिया से युक्त है, अपरिमित / मान वाला है. तृष्णारूप अभिलाषा अपन, बंचन की कलुषता का निग्रह करने वाला है. हावा परिका संयम में रखने वाला है बाह्य आभ्यतंर परिग्रह के त्यागी सर्व धर्म में उत्कृष्ट निर्ग्रन्थ का धर्म है. श्री सीकरी से उपदशा हुवा है. कर्म माने के आश्रव मार्ग का रूपन करने वाला है. सदैव निर्भय है. लोप "दोप से रहित है. ऐमा व्रत धारण करने वाला सब मनुष्यों में उत्तम है. प्रधान पलवंत है, साधु लोगों का को यह महावत सम्मत है, और परम उत्कृष्ट साधुषो को नाचरने योग्य है.॥२॥ ग्राम नगर, खेड, कर्बट, BI