________________ 48: दशपाङ्ग-प्रश्नव्याकरण पूत्र-द्वितीय संवरद्वार - अकलुसो अच्छिद्दो अपरिस्सातो, असंकिलिट्ठो सुद्धो सव्वजिणमणुन्नाओ // 14 // एवं बितियं संवरदारं फासियं पालियं सोहियं तिरियं किटियं अणुपालियं आणाए आराहियं भवइ // एवं नायमुणिणो भगवया पण्णवियं परूवियं पसीद्धं सिद्धं सिद्धिवर सासणमिणं आपश्यिं सुदेसियं, पसत्थं बितियं संवरदारं सम्मत्तं तिबेमी // इति संवरदारस्स वितियं ज्झयणं सम्मत्तं // 2 // भगवान की आज्ञा का पालन करे // 14 // इस दूसो संवर द्वार को आत्मा से स्पर्श पालन करे, अति. Fचार रहित रखे, पार पहुंचावे, कीर्ति करे, आज्ञानुसार बर्ते, आत्म हितार्थवाले, जिनाज्ञा के आरा धक बने. ऐसा ज्ञात नंदन श्री महावीर स्वाधीने प्ररूपा है. प्रसिद्ध किया है, व्याख्या की है, तत्व से is बताया है. यह जिन शासन का प्रधान मत है. इस का बारह प्रकार की परिषदा में कथन किया है, अच्छा उपदेश दिया है, यह प्रशस्त है, यह दूसरा संवर द्वार संपूर्ण हुवा. यह जैसा मैंने श्री भगवंत स 4. सुना है तैसा ही तेरे से कहता हूं. // इति संवरद्वार का दूसरा अध्ययन संपूर्ण हुवा // 2 // * सत्य वचन नामक द्वितीय अध्ययन 48 *