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________________ दशपांङ्ग प्रश्नव्याकरण मूत्र-द्वितीय-संवरद्वार 488 तिय पायपुछणादि भायण भंडोबहि उवगरण असंचिभागी असंग्गहरुइ तववइ तेणेयरूव तेणेय आयारेचव भावतेणेय // 3 // सहकरे झंझकरे कलहकरे वेरकर विगहकरे असमाहिकरे सयाअप्पमाणभोई सययं अणुबध वेश्य, निचरोसी, सेतारिसए नाराहए वयमिणं // 4 // अहकेरिसए पुणाई आराहए वयमिणं ज से उव हिभत पाण संगहणं दाणकुसले अञ्चत बाल दुव्वल गिलाण वुढ्मासखमणपात्त आयोग्य उवज्झाए सेह कोइ कहे कि क्या तुम स्थविर हो?तव स्थापिरन हीं होने पर भी स्थनिर बतलावे तो वह वय का चोर होता है रूपवंत दीखने से कई कहे कि क्या तुम राजकुल से नीले हो ? राजकुल का नहीं होने पर भी राजकुल का , बतावे सो कुल का चोर, मलिन वस्त्र देखकर कोई कहे कि अमुक साधु उत्कृष्ठ आचारवाले सुने हैं तो क्या आपही हो ? शुद्धाचारी नहीं होने पर भी शुद्धाचारी बने सो आचार का चोर, और गुप्त कुकम कर लोकों में वैराग्य बतलावे यह भाव का चोर, यह पांच प्रकार के चोर बताये हैं. // 3 // प्रहर रात्रि व्यतीत हुए पीछे बडे 2 शब्द से बोले, झंझ वचन से बोले, क्लेश करे, वैर करे, विकथा कर, असमाधि उत्पन्न / करे. प्रमाण से अधिक भोजन करे, निरंतर वैर विरोध रखे, इस प्रकार के जो मनुष्य होते हैं वे भी तीसरे / ॐ संकर के आराधक नहीं होते हैं // 4 // अव आराधक का स्वरूप कहते हैं. जो साधु वस्त्र पात्रा आहार पानीअदि का संग्रह सूत्रोक्त विधि से करे, आचार्यादिक को यथोचित कुशलता पूकि देवे , + दत्तव्रत नामक तृतीय अध्ययन - 4th .
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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