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________________ A न देशमाङ्ग-प्रश्नाकरण सूत्र-द्वितीय सरद्वार 212 पिसणं फरुसं भणेज्ज, कलहं करेज वेरंकरेज्ज, विगहरज्जं कलेहवरं विगहंकरेज, सच्चंहणेज. सीलहणेज विणयंहणेज, सच्चंसीलंविणयं हणेज, वेसोभवेज, वत्थुभवेज, गमाभोज, वेसोवत्थुगमोभवेज, एवं व अण्णंच एवमादीत्तं भणेज, कोहगा पलितो तम्हा के हान सेवियव्वो, एवं खंतिए भाविओ भवइ, अंतरप्पा संजय कर चरण नयण वयगोसूरो सच्चज्जव संपन्नो॥ 10 // तइयं लोभो न सेवियव्यो, लुद्धो लोभो भणिज अलियं, खेत्तस्स वात्थुस्सव कएण लुद्धो लोभो भणिज आलयं, कित्तीएव लाभस्सव कएण लुडोलोभोभणेज अलियं. इड्डीएव सोक्रस व कएण लुडो लाभो भणिज्ज अलियं, भत्तस्सव पाणस्सव कएण लुडो लोभो भणिज करता है. मत्य की बात करता है, शाल की घात करता है, विनय को घात करता है सत्य शील और विनय ये तीना की साथ भी घात करता है. अपिय होता है, दोषित होता है, खिसाना होता है, अप्रिय दोषित और खिमाना ये तीनों साथ होता है. ये और इस सिवाय अन्य भी बहुत दोष क्रोध युक्त वचन बोलने में " में होते हैं. काच रूप महा अंगार है इस लिये क्रध का सेवन करना नहीं. क्रोध का उदय होने पर है क्षम धारन करना. हाथ, पांव आंख, मुख वगैरह वश में करके सत्य और सरलता संपन्न बनना // 10 // तीसरी भावना-लोभ का सेवन करना नहीं. लोभ में लुब्ध.बना हुवा झूठ बोलता है, क्षेत्र और वत्थु / सत्य वचन नामक द्वितीय अध्ययन :
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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