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________________ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - विइयरस वयस्स अलियवयणस्स वेरमाण परिरक्खणट्टयाए // 8 // पढमं सोऊण संवरटुं परमर्से सटुजाणिऊणं नवेइयं, नतुरियं नचवलं नकुडयं नफरुसं नसाहस नयपरसपीडाकारगं सावजं सच्चंचहियंच मियंच गाहणंच सुद्धसंगय, मकाहलंच समिक्खियं संजएणकालं मियवात्तव्यं, एवं आणुवीयसमिति जोगेण भविओ भवति अंतरप्पा संजय कर चरण णयण वयणो सो मच्चजव संपण्णो // 9 // 2 वितियं कोहोण सेवियव्वो कुद्धोचंडिक्किओ मणसो अलियं भणेज, पीसुणं भणेज फरुसं भणेज, अलियं // 8 // प्रथम भावना-सद्गुरु के पास संवर के लिये, परमार्थवाली, भाषा अच्छी जानकर, शीघ्रता, त्वरितपना, चपलता, कटुता, परुषता, और साहसीकता रहित, अन्य को पीडा नहीं करे वैसी निर्वद्य, सत्य, तथ्य, पथ्य, मर्यादा युक्त. प्रमाण युक्त, अन्य को प्रतिकारी, शुद्ध, निर्मल, निर्दोष, कोई पकड सके नहीं वैसी, स्पष्ट, और विचार सहित भाषा योग्य समय में बोले. इस तरह बोलते भाषा समिति युक्त भव्य प्राणी का अंतरात्मा मंजम, करण, चरण, और नयण, वचन में शरवीर व सत्य और सरल भाव को प्राप्त होता है, यह प्रथम भावना हुई // 9 // दूपरी भावना क्रोध का सेवन करे नहीं क्यों कि क्रोध रूप चांडाली पन से मृषा बोलता है. क्रोधी चुगली खाता है, कठिन बोलता है, मृषा, चूगल और कठिन बचन ये all तीनों साथ बोलता है, क्लेश करता है, वैर करता है, विकथा करता है. क्लेश वैर और विकथा ये तीनों साथ भी * प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवस हायजी ज्वालासमादजी * 1
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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