________________ 4- 155 सूत्र-द्वितीय संवरद्वार - नतंसिपिषधम्मो, नतंकुलीणो, नतंसिदाणपति,, नतसिसगे,नतंसिपाडेरूवो, नतासलट्ठो, नपंडिओ, नबहुंस्सुओ, नवियतं तवस्सी नयावि परलोग निस्थियमइ, नतंसिसव्वकालं जाइ कुलरूव वाहिंरोगेणवाविजंहोइ वजणिज्जं, दुहओ उवचार मइकंतं, एवं विहंतु सचंपिनवत्तव्वं // 4 // अहकेरिसकंपुणाई सच्चंतु भासियव्वं जंतं दव्वेहि पज्जवेहिय गुणे हिंकम्महिं बहुविहेहि, सप्पेहिं आगमेहिय नामक्खायं निवाय उवसग्ग "दीन, अपण्डित, अबह सूत्री, अतपस्वी, नास्तिक, सब कला के ज्ञान रहित इत्यादि कटु वचन भी बोलना नहीं. और भी जानि, कल, रूप व्याधि और रोग जिन को होवे उन को वैसे तिरस्कार युक्त वचन कि जो उन को अपियकारी हो तो वे सत्य होनेर मृषा है. इम से ऐसे वचन सदैव वर्जनीय हैं, द्रव्य और भाव ऐसे दोप्रकार के सत्य वचन मान पूजा को अतिक्रांत होवे तो बोलना नहीं // 4 // अब कैसे वचन बोलना सो कहते हैं-जो वचन द्रव्यसे युक्त हो, पर्याय से युक्त हो, वर्णादि गुण से युक्त हो, व्यापारादि कर्म से युक्त हो. बहुत प्रकार के शिल्प कला कौशल्यता से युक्त हो, सिद्धांत से युक्त हो, वैसे वचन बोलना. और भी मोलह // प्रकार के वचन बोलना-तद्यथ-१ नाम-देवदत्त, 2 अख्यात-क्रिया सहित जैसे भवति, करोति, 3 निपात-. * अश्यय जसे खलु, अहो इत्यादि,४उपसर्ग-जिस से धातु के अर्थमें फेरफार होवे जैसे आहरति-चोरी करता है? निहरति निहार करता है, 4 तद्धित-यह प्रत्यय है. 6 समास-दो शब्दों का संयोग करना जैसे-काया, 48 दशमाङ्ग-प्रश्नव्याक सत्य वचन नामक द्वितीय अध्ययन 4.8