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________________ - 42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी मंडलाओ विमलत्तरं सरयनहयलाओ, सुरहितरं गंधमायणाओ, जेवियलोगमि अपरिसे सा मंताजोगाजावाय, विजाय जंभगाय अत्थाणिय, सत्थाणिय, सिक्खाओय आगमाय सव्वाइं विताई सच्चेपतिठियाई, // 3 // सच्चपिय संजमस्स उयवरोहकारगं, किंचिनवत्तिव्वं हिंसा सावजं संपउत्तं भैदविकहकारगं, अणत्यवाय कलह हारकं अणजं, अववाय विवायं, संपउतं वेलबंउज्जधेज बहुलं निलजं लोयगरहणिजे, दुदिटुं दुस्सुयं अमुणियं अप्पणोयवणा परेसुनिदा, नतंसि मेहावी, नतंसिधणो, निर्मलहै, गंधमादन गजदंत पर्वतसे भी अतिसुगंधमय है, यह जा जगत् में प्रसिद्ध हरिण आदि मंत्र बशी करण, प्रज्ञाप्त आदि विद्या, मुंभकादि तीर्छ लोकबासी देव, गाणतादि कलौं, और शव, ये सब सत्य वचन में प्रतिधित ॥३॥ताहपि जो सत्य संयम को बाधा रूप होवे वहकिंचिन्मात्र भी बोलना नहीं, हिंसाकारी स वद्य भाषा, रोष प्रयुक्त वचन, स्त्री आदि की विकथा, निस्सार वचन, क्लेश की वृद्धि कर नेवाले वचन, अनार्यको बोलने योग्य वचन, दूसरे की निन्दा युक्त वचन, विवाद-कदाग्रह उत्पन्न करनेवाला वचन, विटम्बना करने वाला वचन, धृष्टपना. करनेवाला वचन, लज्जा रहित वचन, लोकों में गर्दा योग्य निंदा करानेवाला वचन, खराब देखा हुवा वचन, खराब मुनाहवा वचन, इत्यादि कवचन मनि जनको बोलने योग्य नहीं हैं, तथा स्वतः की प्रशंसा और अन्य की निंदा होवे वैसे वचन, अरे मूर्ख, दरिद्री, अधर्मी, नींव, कृपण, कायर, कुरूपी, * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी बालामसादजी * 1
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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