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________________ सत्र अनवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनी श्रीमोलख ऋषिजी तद्धित समास संधि पद हेठ जोगेय उणाइ किरियाविहाण,धातु सर विभत्ति वमजुत्तं तिकलं, // 5 // दसविहंपि सञ्चं जहभाणियं तहय कम्मुणाहुति दुवालसविहाय होति। उमग, कायोत्मर्ग, संधि-साथ आये हुवे दो स्वर को मीलाना जैसे परम ईश्वर-परमेश्वर-८ पद 9 हेतु 10 योग, 11 उनादि 12 किया 13 विधान 14 धातु 15 स्वर और 16 विभक्ति // 5 // दश प्रकार के सत्य वचन जानना. 1 जनपद सत्य-जिस देश में जैसी भाषा होवे वैसी बोलना जैसेपानी, जल, नील ये पानी के नाम-२समत्तसत्य-बहुन मीलकर नाम रखे जसे पंक से उत्पन्न होनेवाला सो पंकज [ कमळ ] यद्यपि कीचड से पेंडक प्रमुख मी उत्पन्न होते हैं परंतु वे पंकज नहीं कहा हैं. 3 स्थापना . मत्य-ताल माप वगैरह की स्थापना कर सो 4 नामसत्य-जैसे नामता कुलवर्धन है परंतु कुल क्षय करनेवाला Bहोते भी कुलवर्धनही कह व 5 रूप सत्य-माधुका वा होवे परंतु गुन न हो तो भी साधु कहावे. 6 प्रतीत्य / मत्य-एकेक को अपेक्षा छोटा बडा बोलावे. जैसे पिता पुत्र व्यवहार सत्य-जैसे पर्वत पर रहे हुवे तृणादि. जलनपर पर्वत जलता है ऐमा कहनाभाव सत्व-जैसे वगला शुक्लवर्ण दीखने आने से श्वेत कहाता है परंतु निश्चय में पांचो वर्ण पाते है 9 योग सत्य-जैसे दण्ड रखने वाला होने सी दण्डी वगैरह और 10 औपम्य सत्य जैसे समुद्रमत् तलाव वगैरह यह दश प्रकार के सत्य जानना जैसे यह बोलने का सत्य कहा वैसे ही अक्षर लेखन के भी दश सत्य जानना. भाषा को व रहे भंद हैं.१ संस्कृत, २प्राकृत, 3 सौरसेनी ४मागधिप *प्रकाशक-राजारहादुर लाहा मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादी*
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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