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________________ 2 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनिश्री अमेलख ऋषिजी+ जीवलोगे अविसंवाइ जहत्थ महुरं. पच्चक्खदेवयंच जंतं, अच्छेरकारगं अवत्थंतरेसु, बहुएस माणुमाणं सच्चेण महासमुद्दमझे चिटुंति ननिजंति मूढाणियाविपोया, सच्चेणय उदगसंभमंति नबुडंति, नयमरंति थाहंचतेलहति, सच्चेणय अर्गाणसंजलं. * मिपिनडझंति उज्जुगामणमा, सच्चेणय तत्ततेल तउयलोह सीसकाइ छिबंति धरंति नयडझंति मणूस्सा, सच्चेणय पव्वयकडाते हैं मुच्चंते नयमरंति, सच्चेणय परिग्गाहया असिपंजरगया समराओ विणिहात अणहायसच्चवादी वहबंधभिओगवेरघोरेहिपके सिद्ध करनेशला, लोको के चित्त को आनंद करने वाला और अवस्थान्तर में साथ रहनेव ला होना है." // 1 // अब मत्य का प्रभाव बताते हैं. सत्य वचन के प्रभाव में महासुमुद्र में रहा हुने मनुष्य दिशा मृढ होने पर भी नहीं डूबते हैं, पानी के सभ्रम में पडे हुवे जहाजों मत्यके प्रभावसे पानीमें नहीं डूबते हैं. सत्य / प्रभावसे वहा मनुष्य नहीं माते हैं, सरल स्वभावी सत्यवादी मनुष्य प्रज्वलित अग्निमें नहीं जलते हैं, सत्यके. प्रभाव तप्त किया हुवा तेल,तरुमा / कथीर ) लोहा.सीना इत्यादि ह थमें रखने भी नहीं जलते हैं, सत्य के प्रभाव पर्वत के शिखर में डाग हुवा मनुष्य मरता नहीं, सत्यके प्रभावसे खङ्गकी धार अथवा भाले की अगि से छेद भेद होता नहीं सत्यके प्रभावसे मंग्रायमें अखण्ड रह, फते पावे, दंडादि से बध, शृंखलादिक का पपन, आभयोग-बलात्कारसे कार्यकी प्रेरना वैर विरोध इत्यादि घोर भयंकर उपसर्गभी सत्यवादी मुक्त होता * प्रकाशक-शनाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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