________________ दशपाङ्ग-प्रश्नव्याकरण सूत्र-द्वितीय संवरद्वार - // हीतिय-अध्ययनम् // जंबू ! बितियंच सच्च वयण सुद्धं सुपियं सिवं मुजायं सुभासियं सकहियं सुव्वयं सुदिटुं सुपतिट्टियं जसं, सुसंजमियं वयण सुबाडयं, सरवर नरबसभ पवर बालवग सुविहित जणबहुमयं, परमसाहधम्मं चरणं, तवनियम परिग्गहियं, सुगतिपहदेसियंच, लोगुत्तम वयमिणं विजाहरगगणगमण विजाणसाहण सग्गमग्गं सिद्धिपहदेसियं अवितह त सच्च उज्जुय, अकुडिलं, भयत्थं अत्थंउविसुद्ध,उज्जोयकर,पगासंकरभवइ सव्वभावाणं, श्री सुधर्मा स्वामी करते हैं. कि अहो जम्बू ! सत्य वचनरूप दूसरा संवरद्वार निर्दोष, पवित्र, युद्ध, पियकारी, अच्छा, उत्पन्न हुवा, मुभाषित, सुकथित, सुव्रत, अच्छा दखा हुवा, संप्रतिष्ट यशवाला, शुद्ध सयमियों को बोलने योग्य, देव मनुष्य, धीर पुरुष प्रधान बलवंत उत्तम और संयमी पुरुषो को पियकारी, साधुओं को आचरन योग्य, धर्माचरण वाला, धर्षानुष्ठान वाला, तप नियम प्रग्रहित ( सत्य में ही तप नियम प्रमाग भूत होते हैं ) मोक्ष का पंथ, सब लोक में उत्तम, विद्याधरो को गगन गामिनी आदि विद्या सिद्ध कराने वाला, अविनथ्य, अकुटिल, सद्भूत अर्थ वाला. अर्थ से विशुद्ध, मूर्य समान तेजस्वी दीपक समान प्रक श वाला, अविसंवादी, यथार्थ, मधुर, प्रत्यक्ष देवों को आधीन करने वाला, मंत्र तंत्रादि ] 48 सत्य वचन नामक द्वितं य अध्ययन 4.49