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________________ 4. अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषी निव्वाण चरित्त भावणाए अहिंसए संजए सुसाहु // 12 // एवं मियं संवररसदारं सम्म संचरियव्वंहोइ सुप्पणिहियं, इभेहिं पंचहिवि कारणाहि मणवयकाय परिरक्खिएहि, निच्चं आमरणतंचए संजोगोनेयव्वो, धितिमता मतिमता आणासवो अकलुसो अच्छिद्दो अपरिमाइ असंकिलिट्ठो सुडो सब्धजिण आराहियं मणुणाणाओ // 13 // एवं पढमं संवरदारं फासियं पालियं सोहियं तीरियं किटियं आराहियं आणाए अणुपालियं, भवनि,एवं णायमुणिणा भावया पन्नवियं परूवियं पसिद्धसिद्धसिद्धवर सासणमिणं आवियं सुदेसियं पसत्थं पढनं संवरदारं सम्मत्तं त्तिबेमि।।इति पढमं संवरदार सम्मत्तं // 1 // * * को भावना हुवा अहिंसा युक्त संयमी ही सुसाध कराते हैं // 12 // यह प्रथम संवर दर सम्यक् - प्रक र से मंवरता हुवा, अच्छी तरह प्रणित निधान की तरह रक्षा करता हुवा, पापकारी मन वचन काया के a योगों की रक्षा करता हुवा मृत्यु को प्राप्त होवे नहीं वहां लग सदैव संयम का पालन करता हुवा, धृति, मति युक्त अश्रव रहित, परिण मों की कलुषता रहित, कर्मरूप पानी आने का आश्रव रूप छिद्र रहित अपरिश्राय और परिणामों की क्लिष्टता रहित प्रवर्ते॥१३ // जो जिनाज्ञा के पालक हैं उन सबन इस प्रथम संवर द्वार को स्पर्शा है, पाला है, पार पहुंचाया है, कीन युक्त ग्रहण किया है, शुद्धपने आराधा ह. जिनाज्ञा अनुसार शुद्धपनेपाल, या ज्ञानानन्दी श्री महावीर स्वामीने प्ररूपा है. प्रसिद्ध किया है. प्रधान मुक्त प्राप्त करानेवाला यही है. ऐसा इस का अच्छी तरह उपदेश किया है.॥इति प्रथम संवर द्वार संपूर्णम्।।१॥ * प्रकाशक-राजाबहादुर लालासुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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