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________________ 147 -द्वतीय-संवरद्वार + अनुढे असिट्टे अहाँगे अदाणे अकलुणे अविसाएती अपरितंतजोगी जयण घडण करण चारयविण्य गुग्णजोग संपउत्ते,भिक्खूभिक्खेसणाए जुत्ते समुदाणिऊणभिक्खचरियं उच्छं घेत्तृणं आगए गुरुजणस्स पासं गमणागमणातिचार पडिक्कमण पडिक्कते आलोयण दायणंच दाऊण गुरुजणस्स जहोव एसनिरइयारंच अप्पमत्तो पुणरवि अणेसणाए पयत्तो पडिक्कमित्ता पसंते आसीण सुहनिसण्णो मुहत्तमेतंचज्झाणं सुहजोग नण सज्झाय गोवियमणे धम्मणे अविममणे सुहमणे अविग्गहमणे समाहियमणे सहासंवेगनिजरमणे , नहीं मीलती होवे वहां से गोष, कथा कहना आदि खशामदी विना गवेषे, दुष्टता नहीं करता हुबा, दीनपना 1 नहीं करता हुवा, करुणा नाक योग्य नहीं बनता हुवा, विवाद रहि', अन्यको खेदित किये बिना, संयम की यत्ना के लिये, अप्राप्त ज्ञानादि की प्राप्ति के लिये, करण चरण विनय गुण योग से संयुक्त, भिक्षा की। एषणायुक्त, बहुत घरों, फीरता हवा, थोडारग्रहण करता हुवा, पर्याप्त प्राप्त होने से गुरु आदि ज्येष्ट पुरुषोंकी पास आर, गमनागमन दोष प्रतिक्रमण कर, गुरु सन्मुख सब आलोचना कर, गुरुका उपदेश श्रवण कर पिरति आचार पूर्वक रहे हुवे दोष को आलोचनाकर यत्ना से कायोत्सर्ग क लिये शांत आसन से समाधि सहित बैठे. मुहूर्त मात्र ध्यान करे. शुभ योगों की प्रवृत्ति करे. इन की स्ाध्याय करे, आहार की इच्छा से मन को गोपता हुना. श्रुत चारित्र धर्म में मन को जोडता हुवा, चित्त की शून्यता रहित, मन की * क्लिष्टता रहित, मन का विग्रहपना रहित, समाधि भाव सहित, श्रद्धा तस्वकी रुति वैराग्य भाव, सहित प्रोक्ष / ___ +is+ अहिंसा नामक प्रथम अध्ययन Hदशमाङ्ग प्रश्नव्याकर
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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