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________________ अनुवादक-बालबमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी मणेणपावएणं पावकं अहम्मियं दारुणं निसंसं वह बंध परिकिलेस बहुलं भय मरण पारकिलेस संकिलिटुं, नकयाइमणेणं पावाएणं पावगं किंचिविन्भायव्वं, एवं मणसमिइ जोगेण भाविओ भवइअंतरप्पा, असबल मसंकिलिटुं निब्वाण चरित्त भावणाए अहिंसाए संजए सुसाहु // 9 // 3 तइयंच वइए पावाए पावगं अहम्मिय दारुणं निरसंसं बहबंध परिकिलेस बहुलं जरामरण परिकिलेस संकिलिटुं नकयाइ वइए पावियाए पावगं किंचिवि भासियध्वं, एवंवइसमिइ जोगेण भाविओ भावइ अंतरप्पा असबल मसकिलिटुं निव्वाण चरित्त भावणाए अहिंसओ संजओ सुसाहु // 10 // ४चउत्थं आहार एसणाए सुद्धं उच्छं गसियव्वं अण्णाए अकहिए क्लेशकारी, मृत्यु रूप भय का कारन, और संक्लिष्ट पापकर्म का कदापि चितवन कर नहीं. ऐसा मन समिति युक्त अंतरात्मा को भावता हुवा पाप कार्य रहित निर्बल असंक्लिष्ट, अखड चारित्र की भावना युक्त और अ.. हिंसा युक्त संयमी ही सुमाधु कहाते हैं // 9 // तीसरी भावना-पापकारी अधर्मकारी, दारुण, नृशंस, बध वंधन और परिक्लेशवाला, जरा मरण रूप क्लेशवाला, संलिष्ट वचन को कदापि बोले नहीं. इस तरह वचन समिति योग से अंतगत्मा को मावनेवाले पाप कर्म रहित निर्मल सक्लिष्ट परिणाम रहित अखण्ड चारित्रबाले आहंसक संयमी ही सुसाधु कहाते हैं॥१०॥चौथी भावना पाहारकी एषणा भुद्धिकी है. थोडा आहार गवेष,ज्ञाति * कापाक राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी बालामवादजी *
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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