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________________ 42 पश्नव्याकरण सूध द्वितीय संवर ? इमंच पुढविदग अगणि मारुअं तरुगणं तस्थावर सव्वभूय संजय दयट्टयाए सुद्धंउच्छंगवेसियव्वं, अकयंकारियमण हुय, मणुदिटुं अकयकडं नवहिकांटीहिं सुपरिसुद्ध, दसहियदोसहिंय विप्पमुक्क, उग्गमुप्पायणेसणासुद्ध, ववगयचय चइय चतदेहंच, सब जीवों की संयमरूप दया के लिये शुद्ध आहार की गवैषणाकी जाती है. वह आहार किस प्रकारका लेते हैं सो कहते हैं साधु के लिये किया होवे नहीं, अन्यके पास कराया होवे नहीं,माधु के लिये पुण्यार्थदिया जाता होवे . नहीं,मनसे भी साधुको उद्देशकर बनाया होवे, नहीं, नवकाटी विशुद्ध. दश दोष गहत-उद्गपनके सोलह दोष (ग्रहस्थसे लगे) और उत्पात के सोलह दोष(साधुसे लगे)जिनको वर्ज कर+ ऐसा निर्दोष आहार ग्रहण करे. 1 शंका कारी, 2 सचित्त से भरा हुवा 3 सचित्त पर रखा 4 सचित्त नीचे रखा 5 सचित्त अंदर रखा 6 अयोग्य दातार अर्थात् गर्भवती स्त्री आदि के हाथ से, 7 सचित्त से मीला हुवा, 8 पूर्ण शस्त्र नहीं परिणमा 9 तूर्तका लीला हवा और 10 नीचे डोलता हुवा लाकरदेवे. यह 10 दोष गृहस्थ व साधु दोनों मिलकर लगावे. .41 साधु के लिये बनाया,२ एक साधु को उद्देशकर किया, 3 साधु के लिये बनाया हुवा आहार में से एक सीत अपने लिये बना हुवा आहार में मील जावे वह आहार, 4 साधु व गृहस्थ दोनों के लिये साथ पकाया हुवा, 5 साध के लिये स्थापकर रखा,६ प्राहणे आगे पीछे करके दे 7 प्रकाशकर देवे 8 मोल लाकर देवे 9 उधार लेकर देवे 10 अंदल बद्दल करके देवे,११ सन्मुख लाकर देवे,१२ छाबा खोलंकर देवे,१३ माले पर से लाकर देव, 14 निर्बल से कीनकर देवे अहिंसा नामक प्रथम अध्ययन Hg
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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