________________ अवाउडेहि, अणिटुभएहिं; अकंडयरहिं, धूतकेसमंसुलोमनक्खेहिं, सव्वंगाय पडिक्कमविप्पमुक्केहिं, समगुंचिण्णा, सुत्तधरबिदियत्थकायबुद्धीहि, धीरमई बद्धिणोयजेते, आर्स विनउगतेयकप्पा नित्थय ववसाय पज्जतकयमतीया, निचंसज्झायझाण अणुबद्ध धम्मज्झाणो पंचमहव्वय जरित्तजुत्ता, समियासमिई सुसमिईसु समियपावा, छव्विहजगवच्छला, निच्चमप्पमंता, एएहिय अन्नेहियाजासा, अणुपालिया भगवइ // 5 // 940 3. अनुनादक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपनी 80 नहीं थूकनेवाले, खुमली नहीं कूचरनेवाले, मस्तक के के, रोम, दाढो, मूछ और कक्षादिक के केश को नहीं संभलनेवाले, सब शरीर का प्रतिकार औषधि आदि का त्याग करनेवाले, सब परिषह सम भाव से सहने कानेवाले, सब मूत्र अर्थ का संक्षेप ब विस्तार कर सके वैसी बुद्धिवाले, स्थिर निश्चल मतिबाले, उत्पातादि चार बाद्धवाले, साष्ट विष सर्प सान तीव्र प्रभाववाले, निश्चय, और व्यवहार के जाननेवाले, मदैव स्वाध्याय ध्यान में लग हुए, पांच महा व्रत रूप चारित्र, ईर्ण समिती आदि पांच समिति से सम तघाले. पांचो समिति में पाप का उपशांत करनवाले, छ काय के जीवों को वत्सल,सदैव मद विषय कषाय " निद्रा और विकथा इन पांचों प्रमाद रहित. इत्याद गुणोंवाले और भी ऐसे गुनवालोंने इस दया भगवती * का अनुक्रम से पालन किया हैं,इस की प्रशंसा की है // 5 // अव पृथ्वी पानी,अग्नि, वायु,वनस्पति, बस, स्थावर वगैरह *पका.क-राजाबहादुर लाका सुदरसहायनी वाला प्रसादजी*