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________________ फासुयंच नानसिजं, कदापयोयण फासु उवणीयं, नतिगिच्छा मंत मूलभेसज्जकजहेउ, , नलक्खुणुप्पाय सुभिणजोइयस निमित्त कहकुहकप्प ओचंडनिविडं भाणाएय नविरक्खाणाए, नविसासणाए, निविडंभणरक्खणसासणाए भिक्खंगवसियव्वं, TE गृहस्थने अपने लिये बनाया होवे, जिस में से सब जीव चव (मर) गये होवे, और देहं मात्र रहा होवे. जो मासुक निर्जीव होवे, किसी प्रकार की नेश्राय रहित अथवा बैठे विना खडे 2 ही ग्रहण करे, परंतु कथा वार्त कहकर उस के बद्दल आहार ग्रहण करे नहीं. औषध भैषज्य बताकर, हस्तादिक की रेखा आदि लक्षण बताकर, स्वम का अर्थ प्रकाश कर, ज्योतिष निमित्त प्रकाश कर कथा कहकर, अन्य को विस्पय उपजाकर, धूर्तता से ठगकर, अन्य की विटम्मना कर, घगदिक की रक्षाकर, किसी प्रकार के वचन से विश्वास उपजाकर, आडम्बर बताकर, बच्चों धन इत्यादि का रक्षणकर 15 स्वामी की आज्ञा विना देवे, 16 साधु का आगमन जानकर विशेष बनावे. ये सोलह दोष ग्रहस्थ लगावे. १धाय कर्म बालक को रमाकर लेवे, 2 दूत कर्म समाचार कह कर लेवे. 3 निमित्त प्रकाशकर लेवे, 4 जाति मीलाकर लेवे, 5 दीनता करके लेवे, 6 औषधि बताकर लेवे,७-१० क्रोध मान माया व लोभकरके लेवे,११दान दिये अथवा पीछे गुणानुवाद करके लेवे, 12 विद्या करके लेवे, 13 मंत्र करके लेवे, 14 चूर्ण करके लेवे, 15 वशीकरणादि योग करके लेवे, ओर 16 मूल / कर्म-गर्भपातनादि करके लेवे, ये 16 दोष साधु लगावे. यों सब 42 दोष रहिन शुद्ध आहार ग्रहण करे. मुनि श्री अमोलक ऋषिजी * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. मनुवादक-पालनमचारी
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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