________________ 43 पूत्र-द्वितीय मंवर 18+ दशमाङ्ग-पनव्याकरण पत्तेहिं खेलोमहिपतेहिं, जल्लोसहिपत्ते हैं, विप्पोमहिपत्तेहिं, सव्वे सहिपत्ते हैं, बीज. / / बुडीएहि, कोटबुद्धीहिं. पयाणुमारीहिं, मंभिन्न मोएडिं, सुयधरेडिं. मणबलिए हैं वयबलिहिकायबालिए हैं. नाणबलिएहिं, दंसणबलिएहिं, चरितबलिएहिं. खीर।सवे हैं, 137 महुआसवेहि, सप्पिया वेहि, अखीण महागासिएहिं, चारणेहि, विजा हरहि, चउत्थभ त्तिएहि, छट्ठभ पिएहिं, अट्ठम भत्तिरहि, एवं दुवालस जिनका दिया इवा ज्ञान कोठेमें रखी हुई बस्तुकी तरह विनाश नहीं पात वैसी ही बना रहे ऐसे कोष्ट बुद्धिवाले, एक पद के अनुमार से मव पद मम्झ जाये वैसे पदानुपाग्निी लब्धिवाले, जो पांवों इन्द्रियों का कार्य एक में इन्द्रिय स कर सके ऐसे सभिन्नश्रोत लब्धिवाले, मन का निश्चलकर मके. ऐने मन बलिये, जैसा कहे वैमा कर सके सो ववन बालये, परिपह उपसर्ग में चलित न हो वैसे ऐसे काया वलिये, किमी से पराभव न पा सके वन ज्ञान व लये, निश्चल दर्शन सम्मक्त्ववाले सो दर्शन बालये, निरतिचार चारित्र पाल वाल सा चरित्र बलिये, जिनक वचन और जैसे परिणमे सो सर श्री, जिनका वचन मधु शहत जैसा परिणने मो पधुर श्रवी लब्बिाले, जिन का वन घृत जरा परिगपे सो मश्री लब्धियाले. जिन के स्पर्शमात्र से 4 भान में रही वस्तु अखुट रहनसे अभीण मानस ल डेयराले. जया के स्पर्श मात्र से गगन में गति करे सो जघा च र ग लब्धियाले. विद्या के प्रभाव से गगन में गते करे ऐसे विद्याधर, चतुर्थ भक्त एक उपवास कर वाले. दो उपनास, तीन पश, यात् माप क्षपण करनेवाले, दो मःम क्षपन यावत् छ मास क्षमन अहसा नामक प्रथर अध्ययन 46:08