SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी हरिय, जलचर, थलचर खहचर, तसथावर सव्वभूखेमकारी // एसा भगवइअहिंसा जासा अपरिमिय नाण देसणधरेहि, सीलगुण विणय तवसंजम नायगेहिं, तित्थंगरहि सव्वजगवच्छलेहिं. तिलोगमहिएहि, जिणचंदेहि, सुदिट्ठा, ओहिजिणेहिं विण्णाया, उज पइहिंविाटा, विउलमइहिबिदिता, पुव्वधरहिं अहिया,बे उविहिंपइणा,आभिणीबोहिय नाणीहिं, सुयगार्ण हैं, ओही गाणेहिं मणपज्जवणाणेहि, केवलणाणीहिं, आमोसहिबस स्थावर जीवों को क्षेम करने वाली है. अनंत ज्ञान दर्शन के ध रक, शील-आचार गुण विनयादब तप और संयम के यक सब जगत् में वात्सल्यता करने वाली, तीस लोक में पूज्यनीय, केवली में चन्द्र सपान ऐसे श्री तथैकर भगवानने केवल ज्ञान से दया के श्रेष्ट फल देखे हैं, दया को भुक्ति देने वाली दखी हैं. अवधि ज्ञानीने भी दया के फल विशिष्ट देखे हैं. ऋजु तिमनः पर्यत्र ज्ञ नाने दया के फल श्रेष्ट देखे हैं. वैसेही विपुल मति मनःपर्यव ज्ञानी, पूके ज्ञान धाक वैक्रेय लायके धारक, आभिनि वोधिक ज्ञानी, श्रुत ज्ञानी, आंधिज्ञानी, और केवलज्ञान ने दयाके फल श्रेष्टदेखे हैं. जिनके हस्तादि के स्पर्श मात्रमें औषधिकभूत परिण में ऐसे आमोही लब्ध वाले, जिनके मुखका श्लेष्म औषधिभूत होने वैसे जलोसही लब्धि वाले, जिनक शरीरका पसीना औषधिरूप परिणसे ऐसे विस्पोसही लब्धिवाले जिनकी वाडित औषधिरूप परीणमे ऐने लब्धिवाले, जिन को किंचिन्मान दिया हुवा ज्ञान बीज जैसे विस्तृत हो जावे वैसे पीज बुद्धिवाले * प्रकाशक-राजाबहादुरलाला मुखदवसहायजीवाल.सादजा *
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy