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________________ सत्र 49 + दशमांङ्ग प्रश्नव्याकरण मूत्र-द्वितीय-वरद्वार 4.11 काई, संवरदाराई पंचकहियाणीओ भगवया // 1 // तत्थ पढम अहिंसा जासा स देवमणुया सुस्सलोगस्स भवइ, दीवोताणं सरणगइपइट्ठा // 2 // 1 निव्वाणं, 2 निव्वुइ, 3 समाही, 4 संति, 5 कित्ती, 6 कंति, 7 रतिय, 8 विरतीय, 9 सुयंग, 10 तित्ती, 11 दया, 12 विमुत्ती, 13 खंति, 14 सम्मताराहणा, 15 महति, 16 बोही, 17 बुद्दी, 18 धिती, 19 समिद्धी 20 रिद्धी, 21 विधी अर्थत् मोक्ष मार्ग अथवा स्वर्ग को प्राप्त करानेवाले हैं. इन पांच में से प्रथम सा द्वार कहते हैं. यह अर्हिसा देवता मनुष्य, असुरादि सब लोक में दीपक समान प्रकाश करनेवाली है. जैमे समुद्र में द्वीप आधार भूत है वैसे ही संसार समुद्र में दया आधार भूत है // 2 // इम भगवती अहिंमा के ६.नाम कहे हैं। तधथा-१ निर्वाण-मोक्ष का स्थान, 2 निवृत्ति-चित्त शांत करनेवाली, 3 समाधि-सपता का स्थान, 4 शांति द्रोह का निवारन कर शांति करनेवाली, 5 कीर्ति-विरूपात कीर्तिवंत, 6 काति-शारीरिक व ज्ञ.नादिक की क्रांति करनेवाली, 7 रति-प्रियकारी, 8 विरति-व्रतरूप, 9 सूत्र-द्वादशांगी सूत्र का अंग रूप 10 तृप्ति-संतोष का स्थान 11 दया. 12 विभुक्ति सब बंधन से मुक्त करनेाली, 13 शांति-क्षमा का *स्थान, 14 सम्मत्त आराधना वोवीज की आराधना करनेव ली १६अहर्ति पूज्य?योधी-सर्वसधर्म के वध की दाता 17 बुद्धि अहिंसा भय बुद्धि सुबुद्धि होती हैं, 18 धृति-धैर्यतः का स्थान, 19 समृद्धि 20 ऋद्धि अखा नामक प्रथम अध्ययन
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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