________________ बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - सव्वभूयखेमकरी // तोसेस भावणाओ, किंचि वोच्छे गुणुलेसं // 3 // ताणि उइमाणि सुव्वय महव्वयाइं // लोकहीयव्वयाई, सुयसागर देसियाई, तवसंतमवयाई, सीलगुणवरवयाई, सञ्चजवव्वयाई, नरगतिरिय मणुयदेवगइ विवजयगाई, सव्व जिण संसणगाइ. कम्मरयविदारगाई, भवसय विणासगाई, दुइसय विमोयणकाई, सुहसय पव्वतणगाई, कापुरिस दुरुतराई, सुपुरिस निसेवियाई, निवाण गमण मग सग्गप्पणाय असा का स्वरूप कहते हैं. बस-द्वन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुर्गेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय; स्थावर पृथ्वी, पानी, अ अग्नि, वायु और वनस्पति, इन सब प्रकार के जीवों का क्षेम कुशल चाहनेवाला है. अहिंसा व्रत की पांच , भावन इत्यादिका किंचिन्मात्र वर्णन करूंगा. अहिंसा के अनंतगुन हैं. इनका वचन द्वारा सम्पूर्ण वर्णन नहीं मकें परन्तु हिंशा के गण का किंचित वर्णन करूंगा // 3 // मधर्मा स्वामी कहते हैं कि ये पांन संवर द्वार महा वा लोक के हित के कर्ता सिद्धांत सागर में प्ररूपे हुए, तप व संयम के व्रतवाले, शी गुण के धारक, सत्य और ऋतुता के व्रतवाले नरक, तिच, मनुष्य और देव गति के परिभ्रमण का त्याग करानेगले, भूत, भविष्यत् और वर्तमान काल के सब जिन भगवान के शासन में प्रवर्ते हुए, कर्म रज विदारनेवाले, सेंकडों भव का विनाश करनेवाले, जन्म जरा मरण रूप दुःख से मुक्त करानेवाले, अनंत अक्षय अव्यय मुख के भोक्ता, कायर पुरुषों को दुरुत्तर, सुष्टु पुरुषों को सेवन योग्य, और निर्वाण *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवनहायजी मालाप्रसादजी*