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________________ - 8.... ..... ... ... 000000 0 0 0 00000000................................... / 4.2 SECREESEEEEEEEEEEEEEEERRIERRECERRELESEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE610 द्वितीय संवरद्वार Preditionsanboilaat // दशमाङ-प्रश्नव्याकरण-सूत्रम् // // द्वितीय-संवरहार // जंबू! एतोसंवरदाराइं,पंचवोच्छामि आणुपुवीए / जहा भणियाणि भगवया, संसबदुह विमोक्खणष्ट्ठाए // 1 // पढमा होति अहिंसा, वितियं सच्चयणति, पण्णत्तं दत्तमणुणाय, संवरो बंभचेरम परिग्गहंतंच // 2 // तत्थ पढमं अहिंसा, तस थावर mmmmmmmmmmmmmmmmmm दशमाङ्ग-प्रश्नव्याकरण आहंसा नामक प्रथम अध्ययन श्री श्रमण भगवान श्री महावीर स्वामी के पांचवे गणधर श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य श्री जम्बू स्वामी से कहते हैं कि अहो जम्बू! प्रथम आश्रर द्वार का कथन कह सुनाया अब दूसरा संवर द्वार का कथा तुझे कहता हूं. यह संवर द्वार पांच प्रकार का है और वैसा ही श्री श्रमण भगवन्त महावीर स्वामान सर्व जन्म जरा मुत्यु रूप दःख तथा शारीरिक व मानसिक दुःख का क्षय के लिये कहा है // 1 // पांच संवर द्वारके नाम-१ अहिंसा,२सत्य वचन, 3 दत्तव्रत्त-दियाहुवा ग्रहण करना, 4 ब्रह्मचर्यका पालना." और 5 अपरिग्रह-परिग्रह का त्याग. यह पांच प्रकार का संवर कहा है // 2 // इन पांच में से प्रथम : 1
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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