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________________ | जनेच्छह ओसहंमुहापाओ // जिणवयणं गुण महुरं. विरेयणं सव्वदुक्खाणं // 4 // * पंचे वय उभिऊणं, पंचवय रक्खिऊण भावणं ॥कम्मरय विप्पमुक्कं. सिद्धिवर मणुत्तरं . है ... जति // 5 // तिबमि // इति आसवदारं सम्मत्तं // 1 // * .. जिन वचनरूप औषध सब दुःख को नाशकाने वाला है. परंतु उन को ग्रहण किये बिना दुःख से किसी प्रकार मुक्त कर सके अर्थात् कदापे नहीं कर सके. // 4 // इस प्रकार सेही पांच आश्रव का त्याग कर आगे कहेंगे जैसे पांच संवर जो आचग्ने वाले जीव कर्म रज से मुक्त होकर अनुत्तर प्रधान सुख वाली सिद्ध गति में प्राप्त होते हैं // इति प्रथम अश्रव द्वार संपूर्णम् // * * *: AAAA Adob .66666.0.00000 . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . / अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनी श्री अमोलख ऋषिजी *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * rem minals." 81516255575251528 इति दशमाङ प्रइनव्याकरण सूत्रस्य ....... // प्रथम आश्रवद्वार समाप्तम् // . doTORISTRITI8 awwa
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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