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________________ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी आउयक्कम्मस्तुबद्दवो भेय णिवणगालणाय सबगसंखेओ 12 मच्चु 13 असंजमो 14 कडग 15 महणं 16 बोरमणं 17 परभवसंकामकारओ 18 दुग्गतिप्पवाओ 19 पावकोबोअ२० पावलोभोय२१ छविच्छेदो, 22 जीवीयंतकरणो, 23 भयंकरो, 24 अणकरो, 25 वज्जो, 26 परितावण अण्हओ, 27 बिणासो, 28 निजवणो, 29 लुंपणा, 30 गुणाणं विराहणेति, अवियतस्स एवमादीणि णामधेजाणि होति तीसं // 2 // पाणवहस्स कलुसरस कडुयफल देसगाई // कृषि इत्यादि व्यापार अथवा जीवों को उपद्रव करना उम को परिताप करना सो आरंभ समारंभ 12 आयुष्य कर्म को उपद्रव करना, आयुष्य कर्म का भेद करना, आयुष्य का गालना E उस का संवर्त करना और संक्षेप करना, 13 मृत्यु 14 अमंयम 15 सेना से मर्दन करना, 16 प्राण में जीव का अंत करना,१७ परभव में गमन करना 18 दुर्गति में गिरना, १९पाप प्रकृतिका विस्तारक 20 पापलोभ सो पापकार्य लोभाना अथवा पापरूपलोभ, शरीर छेदन२२जीवितव्यका अतकरनेवाला २३भयो / करनेवाला२४ऋणकरने वाला२५ वज्रसमान वजनवाला२६परितापरूप पाश्रव२७प्राणीका विनाश२८जीब से 5. रहित करना२९ प्राणका छेदन करना३:प्राणियोंके गुण की विरधना अथवा चरित्रादिगुणकी विराधना. ये तीस नाम हिंमा कहे हैं. ये तीसही प्राण वधरूपकर्म यावत् कदुक फल देनेवाले हैं.॥२॥अब जिस कारनसे हिप्ताकरते / प्रकाशक-राजाबहादुर लालामुखदरमहायजी ज्वालाप्रसादजी.
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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