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________________ 48 महभओ पइन्भओ,अतिभओ,बीहणओ,तामणओ,अणजो उधणउय, णिरयवयक्खो, निद्धम्मोणिप्पिवासो, णिक्कलणो, जिरयबासगमण निधणो मोह महभयपयट्टओ, मरण वेमणसो पढमं अहम्मदार॥१॥तस्सय इमाणि नामाणि गोणाणि हुंति तीसं तंजहा 1 पाणबह, 2 उम्मूलणा सरीराओ, 3 अवीसंभोहिं,४ सविहिंसा,५ तहा अकिच्चंच,६ घायणाय 7 मारणायवहणा 9 उदवणा१० तिवायणाय 11 आरंभ समारंभो 12 विचार से किया हुवा, अनार्य-म्लेच्छादिक से प्रवर्तीया, निम्घाण-निन्दा रहित, नृशंस-क्रूर, अथवा श्लाघा रहित, पहा भयकारी, प्रतिभय-अन्य को भयकर्ता, अतिभय-मारणांतिक भयकर्ता, बीहानक-जीवको Eर का स्थान, त्रास का स्थान, अन्यायकारी, उद्वेगकारी, परलोकादिक की अपेक्षा रहित, श्रुत ‘चारि आदि धर्म रहित, पिणासा स्नेह रहित, दया रहित, अंत में नरकावास में लेजानेवाला, मोह और महा भय में कर्ता, और प्राण त्याग रूप दीनपना का कर्ता कहा है. यह प्रथम अधर्म द्वार हुवा. अब इस के गुणनिष्पन्न तीस नाम होते हैं. तद्यथ -1 प्राण वय, एकेन्द्रिय के चार प्राण से पंचेन्द्रिय के दश प्राण तक माणों का नाश करना सो,२ शरीर से उन्मूलना अर्थात् जैसे वृक्ष जमीन में से नीकल जाता है वैसे ही शरीर में से जीव का नीकालना, 3 अविश्वासी. प्राणघात करने वाला अविश्वासी होता है, 4 जी का विषात, 6 अकरणीय-करने योग्य नहीं, 6 घात करना, 7 मारना, 9 प्राणों को उपद्रव करना, 10 मन वचन और काया से अर्थात् देव, आयुष्य और इन्द्रिय इन तीन से पटा ना . . दशम अ-प्रश्नव्याकरण सूत्र प्रथम-आश्रवद्वार 48 हिंसा नामक प्रथम
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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