________________ 102 4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषेनी - सुपति?य कुम्म चारु चलणा, अणुपुव्वस संहतंगुलिया,उण्णत तणु तंबनिहनखा,संठियं सुसिलिट्ठ गूढगोंफाए फणी कुरुविंदावत्त वटाणुपुत्व जंघा समुग्ग निमग्ग गूढजाणू गयगयणा सुजायसणिभारुच वारवारणमत्त तुल्ल विक्कमविलसीयगति, वरतुरग सुजायगुज्झदेसा, आयण हयोव निरुवलेवा, पमुइय वरतुंरगसीह, अतिरेगवटिय कडी, - गंगावत्तग दाहिणावत्त, तरंग भगुर रविकिरण बोहिय विकोसायंत पह्मगंभीर विगडनाभी, साहत साणंद मुसलदप्पणा निगरियवरकणग छरुसरिसवरवइर वलिय मज्झा उज्जग समसहिय, जच्चतणु कसिणनिह, आदेज्जलडह, सुकुमाल मउयरोमराइ, ज्झसविह. रंगवाले चिकने नख हैं, संधी से पीले हुए अच्छे संस्थानवाले गुप्त गूटे हैं, हिरन समान गोलाकार अनुक्रम से बहती हुई जघा है, डब्बे को ढक्कन से बंय करे तव उस की संघी मीली हुई दीखती है वैसे ही निर्मल गुप्त मांसबाले छूटने हैं, पदोन्मत्त हस्ती सपान विलासःाली गति है, प्रधान घोडे समान सुजात पुरुष चिन्ह है, आकीर्ण जाति के घोडे सपान विष्टा का लेप नहीं लगता है. प्रमुदित हर्ष सहित हैं, सिंह समान कटि है. गंगा नदी के आवर्त जैसे दक्षिणावर्त, कल्लोल की भंग होती हुई सूर्य के कारण से विकसित पाखार्डयोगाला पद कमल समान गंभीर निकट नाभि है, एक स्थान बंघे, बीच में संकुचित दोनों तरफ विस्तीर्ण. मूगल सगन, शुद्ध दर्पण के हाथे समान, शुद्ध मुवर्णमय खड्ग की मूठ समान, प्रधान वन के मध्य भाग समान सरल अवक्र प्रमाणपत कार है. स्वभाव से सूक्ष्म पतला नग्ध* ..*प्रकाशक-राजाबहादून लाल मुखदवसहायजी बाळापमादमी *