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________________ त्र 4 103 दशमाङ्ग-प्रश्नव्याकरण मूत्र-प्रथम आश्रवद्वार - गसुजाय पीणकुच्छी, झसोदरी, पम्हविगहनाभी, संनतपामा, संगयपासा, सुजायपासा सुंदरपासा, मियमाइय, पीणरइय पासा, अरंड्यं, कणगरुयंगं, निम्मलसुजाय निरुवहय, देहधारी, कणगर्सलातल पसत्थ समतल उवइत विच्छिन्न पिहलवच्छा, जुयसण्णिभा पीणरइय पीवरपओ? संठिय सुसलिट्ठ. विसिटुलट्ठ सुविणियघण थिरसुबद्ध, संधी पुरवर फलिह वाट्टयभूया, भूयइ ___सरावपुल भोग आयाण फलिह उछूढ, दहिबाहु, रत्ततलोवइय, मउय मंसल सुजाय - चिकना, शोभावन, मनोहर. सुकुमाल, मृदु, अत्यंत कोपल ऐसी रोमकी श्रेणि है, मच्छ अथवा विहग (पक्षी) समान अच्छी उत्पन्न हुई कुक्षि हैं, मच्छ समान उदर है, नीची नमती ईई परस्पर संधी वाली सुंदर शोभनक प्रमाणे पत दोनों तरफ पसलियों हैं. मांपेम पुष्ट नहीं दीख सके वैसी हड्डियों हैं, निर्मल रोग हित शरीर हैं. सुवर्ण शिला समान अच्छा बराबर चौडा वक्षःस्थल है, गाडी के धूपर समान पुष्ट रमणिक जाडे प्रकृष्ट कलाइ सहित सुश्लिष्ट सघन विशिष्ट लष्ट मनोहर मुरचित निवड स्थिर, अच्छे बंध बाल नगर के द्वार की भोगल समान चर्तुल भुना युक्त विस्तीर्ण रमणिक लम्बी बांहा है, वह मृदु. सुकोमल व प्रशस्त लक्षण युक्त है. छिद्र रहित अंगुलीमाले हाथ हैं, पुष्ट अच्छी तरह बनी. हुई कोपल प्रध न हस्त की अंगुलियों हैं. ताम्र समान लाल पवित्र देदीप्यमान चिक्कने नख हैं, हाथ की है। . अब्रह्मचर्य नामक चतुर्थ-अध्ययन Amit
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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