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________________ 4 माङ्ग प्रश्नव्याकरण सूत्र-प्रथम-आश्रद्वार 43 नरवरिंदा सबला अंतउरा, सपरिसा सपुरोहिया, अमच्चरंडणायक, सेणावति, मंतिणीत कुपला, णाणा मणिरयण विपुल धण धण्ण संचयनिहीं, समिद्ध कोसा, रज्जसिरि विपुल मणुभवित्ता. विक्कोसंता, बलेणमत्त; तेविउवणमति मरण धम्म अवितित्ता क.माणं // 6 // भुजो उत्तरकुरु देवकुरु बणविवर पाय च रिणो नग्गणाभे गुत्तमा, भोगलक्खणधरा भोगसस्सिरीया, पसत्यमोम पडिपुण्ण रूव दरिसणिज्जा सजाया सव्वंग, सुंदरंगा, रत्तुप्पलपत्त कंत करचरण कोमलतला, करते हैं. मंडलिक राजा मनुष्यों का इन्द्र, बल, सेना सहित, अन्तःपुर, परिषदा, पुर, पुरोहित, प्रधान, कोतवाल, सेनापति, मंत्रीगण के परिवार साहेन, न्याय नीति में कुशल, नाना प्रकार के पणिरत्न पिविध प्रकार के धन धन्य संचित, परिपूर्ण भण्डार और राज्य लक्षावाले, सदैव राज्य की चिन्ता करने वाले और मदोन्मत्त थे वे भी कामभोग में अतृप्तपने ही मरण धर्म को प्राप्त हुए // // और में उत्तर कुरु क्षेत्र के वन में विचरने वाले पांव से चलनेगाले युगल मनुष्यों के ममुह मनुष्य संबंधी उत्तम भोग भोगनेवाले हैं. भोग लक्षण शरीर संपदा के धारक हैं, भोग से सदैव शोभनिक हैं, प्रशस्त साम्य प्रतिपूर्ण रूप के : धारक हैं, सब अंग के अन्यत्र अच्छी तरह निर्मित बने हुए हैं, रक्तोत्पल कमल समान कांतिवाले हैं, काच्छचे समान बरोबर जरे हुए पात्र हैं, पांच अंगुलि परस्पर मीलन हुई हैं, जो पाछे तम्मे जैसे . अब्रह्मचर्य नापक चतुर्य अध्ययन **
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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